35 सौ डॉलर में बेच डालते हैं एक इंजीनियर
इंजीनियरों और डिप्लोमा धारकों को विदेश में बेचने वाला गिरोह पकड़ाया
कंबोडिया और थाईलैंड समेत द. एशियाई देशों में भारी डिमांड
बंधक बना कर इनसे कराया जाता है साइबर ठगी का अपराध
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और कुछ अन्य राज्यों की पुलिस ने साझा कार्रवाई कर ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया है, जो इंजीनियर या डिप्लोमा होल्डर बेरोजगार युवकों को जाल में फंसाता है और उन्हें नौकरी का झांसा देकर कंबोडिया और थाईलैंड में बेच देता है। तकनीकी रूप से जानकार इन युवकों को हाउस अरेस्ट कर उनसे ऑनलाइन ठगी, डिजिटल इन्वेस्टमेंट, डिजिटल अरेस्ट और ट्रेडिंग के जरिए ठगी करने के तरीके सिखाए जाते हैं और उनसे यह अपराध कराया जाता है।
यूपी पुलिस ने उन्नाव निवासी आतिफ खान और इंदौर निवासी अजय कुमार शुक्ला को गिरफ्तार किया है। पूछताछ में आरोपियों ने खुलासा किया कि उन्होंने दर्जनों भारतीय युवाओं को प्रति व्यक्ति 3,500 डॉलर के हिसाब से अब तक बेचा है। एडीशनल डीसीपी आदित्य सिंह ने बताया कि इस गैंग के फिलहाल दो सदस्य ही हाथ लगे हैं। दोनों से पूछताछ की जा रही है। उन्होंने बताया कि इन लोगों के निशाने पर बेरोजगार युवक रहते हैं। क्योंकि ऐसे युवक आसानी से विदेश में नौकरी के नाम पर जाल में फंस जाते हैं। विदेश भेजने के बाद इन युवकों को वहां मौजूद दूसरा एजेंट विभिन्न ठगों के गैंग को बेचता है। प्रति युवक की कीमत लगभग 3500 डॉलर होती है। इसके बाद जो भी इन युवकों को खरीदता है, वो इनको साइबर ठगी की ट्रेनिंग देता है। एक बार जाल में फंसे ये युवक वहां से निकलना चाहें, तो भी नहीं निकल सकते हैं। क्योंकि इनको हाउस अरेस्ट करके रखा जाता है। इनके सारे कागजात भी गैंग अपने पास रखता है, जिससे ये लोग किसी भी तरह भाग न सकें। एडीशनल डीसीपी ने बताया कि शक है कि ये गैंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय है। पुलिस अन्य साथियों की तलाश में जुटी हुई है।
कंबोडिया एवं दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में बैठे साइबर ठग अपने गुर्गों के जरिए लोगों से ठगी कर रहे हैं। जिससे मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई है। यूपी के बरेली शहर में भी साइबर ठगी के कई बड़े मामले पिछले दिनों सामने आ चुके हैं, लेकिन बरामदगी और असली आरोपियों की गिरफ्तारी में पर्याप्त सफलता नहीं मिल पा रही है। मुख्य आरोपी कंबोडिया और दक्षिण पूर्व एशिया के दूसरे देशों में बैठकर भारत में नेटवर्क चला रहे हैं। यही वजह है कि पुलिस इनके गुर्गों तक ही पहुंच पा रही है। साइबर ठगों ने धंधे का तरीका भी पहले के मुकाबले काफी बदल दिया है। कंबोडिया में बैठे भारत के ही अधिकांश साइबर ठगों ने आगरा, बरेली, लखनऊ जैसे कई अन्य शहरों में मौजूद अपराधियों के साथ मिलकर नेटवर्क बना लिया है। कंबोडिया में बैठे साइबर ठग रुपए ट्रांसफर करने और उसे क्रिप्टो करेंसी में बदलने में माहिर हैं। कंबोडिया के साइबर ठगों को स्थानीय शातिर किराये के खाते उपलब्ध कराते हैं। इनमें ठगी की रकम ट्रांसफर की जाती है। इसके बदले स्थानीय शातिरों को कमीशन मिलता है।
ऐसे ही एक बड़ी घटना पंतनगर स्थित आईवीआरआई के एक वैज्ञानिक के साथ हुई। पिछले दिनों साइबर ठगों ने वैज्ञानिक से एक करोड़ 29 लाख रुपए की ठगी कर ली। साइबर ठगों ने खुद को बेंगलुरु पुलिस और सीबीआई का अधिकारी बताया था। वैज्ञानिक की रकम खातों में ट्रांसफर करवाकर क्रिप्टो करेंसी में बदलकर वॉलेट में भेज दी गई। इस मामले में लखनऊ और बरेली से साइबर ठगों की गिरफ्तारियां हुई थीं लेकिन ठगी की रकम रिकवर नहीं की जा सकी। केवल नौ लाख रुपए ही बरामद हो पाए। हालांकि यह रकम भी वैज्ञानिक को कब तक वापस मिलेगी, इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
कंबोडिया में बैठे साइबर ठगों को स्थानीय ठग ही खाते और शिकार का डाटा उपलब्ध कराते हैं। जिनके खाते में बड़ी रकम होती है उनका डाटा जब कंबोडिया में बैठे ठगों तक पहुंचता है तो वह ठगी करने में लग जाते हैं। शिकार फंसने पर वह भारतीय खातों में ही रुपए ट्रांसफर कर देते हैं। इसके बाद रकम क्रिप्टो करेंसी में बदल दी जाती है। यदि कंबोडिया में बैठे ठगों को डाटा और खाते उपलब्ध कराने वाले नेटवर्क पर प्रभावी कार्रवाई हो तो ठगी के मामले कम हो सकते हैं।
साइबर थाने के इंस्पेक्टर नीरज सिंह ने बताया कि साइबर ठगों की गिरफ्तारी में टीम लगी रहती हैं। स्थानीय स्तर पर कार्रवाई में दिक्कत आती है तो उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप से सीबीआई जैसी एजेंसियों से भी मदद ली जाती है। हालांकि विदेश में धन जाने के बाद उसकी बरामदगी मुश्किल होती है। फिर भी लोगों को चाहिए कि लुभावने विज्ञापनों व किसी तरह के बहकावे व झांसे में न आएं। ठगी होते ही सबसे पहले साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत करें। जितनी जल्दी शिकायत दर्ज होगी, उतना ही धन वापसी की उम्मीद रहेगी।
कंबोडिया में बैठे साइबर ठगों को स्थानीय ठग ही खाते और शिकार का डाटा उपलब्ध कराते हैं। जिनके खाते में बड़ी रकम होती है उनका डाटा जब कंबोडिया में बैठे ठगों तक पहुंचता है तो वह ठगी करने में लग जाते हैं। शिकार फंसने पर वह भारतीय खातों में ही रुपए ट्रांसफर कर देते हैं। इसके बाद रकम क्रिप्टो करेंसी में बदल दी जाती है। यदि कंबोडिया में बैठे ठगों को डाटा और खाते उपलब्ध कराने वाले नेटवर्क पर प्रभावी कार्रवाई हो तो ठगी के मामले कम हो सकते हैं।
पुलिस ने करीब 9 दिन 1800 किलोमीटर चली लंबी छापेमारी के बाद अलग-अलग शहरों से कुल सात आरोपियों को दबोचा है। आरोपी फर्जी कंपनी बनाकर बैंक खाते खोलते थे। बाद में इन खातों का संचालन मलेशिया, चीन, दुबई समेत दूसरे देशों में बैठे लोगों को सौंप दिया जाता था। आरोपी 2 से 10 फीसदी कमीशन लेकर बाकी की रकम विदेश में बैठे साइबर ठगों को ट्रांसफर कर देते थे।
पुलिस ने आरोपियों के पास से 10 मोबाइल फोन, 14 सिमकार्ड, 17 डेबिट कार्ड, 1 लैपटॉप, 3 पैनकार्ड, 5 चेकबुक और भारी मात्रा में अन्य सामान बरामद किया है। पकड़े गए आरोपियों की पहचान दिल्ली निवासी अतुल कुमार, गौसरपुर-मोहम्मदाबाद, फर्रु
साइबर पुलिस ने व्हाट्सएप, गूगल, आईपी लॉग्स, रजिस्टर्ड ईमेल एड्रेस और करीब 200 से अधिक मोबाइल नंबरों की सीडीआर खंगाली। छानबीन में व्हाट्सएप मलेशिया में एक्टिव मिला। काफी लंबी पड़ताल के बाद पुलिस ने टेक्निकल सर्विलांस के आधार पर कई लोगों की पहचान की। 6 अक्टूबर को पुलिस की टीम ने दिल्ली, गाजियाबाद और गुरुग्राम में छापेमारी कर अतुल कुमार और प्रशांत सिंह को दबोच लिया। बाद में इनसे पूछताछ के बाद भावेश कुमार खान को भी गिरफ्तार कर लिया। भावेश एमबीए पास है। अतुल और प्रशांत फर्जी कंपनी बनाकर उनके नाम से बैंक खाते खोलते थे। बाद में इनको भावेश को सौंप दिया जाता था। भावेश भी किसी अमन नामक ठग को बैंक खाते दे दिया करता था। 9 अक्टूबर को टीम ने सुमित और योगेश कुमार को राजस्थान से दबोचा, वहीं बाद में 14 अक्टूबर को गौरव और विवेक कुमार को राजस्थान के अलग-अलग शहरों से गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया है कि इनको 2 फीसदी से 10 फीसदी तक कमीशन मिलता था।
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