देशहित की हर पहल का विरोध करता है विपक्ष
12 राज्यों में एसआईआर शुरू होते ही तिलमिलाहट तेज
तमिलनाडु में डीएमके, बंगाल में टीएमसी ज्यादा बेचैन
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (एजेंसियां)। राष्ट्रीय चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दूसरे चरण की घोषणा किए जाने के बाद फिर से विपक्षी दलों में तिलमिलाहट बढ़ गई है। एसआईआर का दूसरा चरण 12 राज्यों में होना है। विपक्ष के कई राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग की घोषणा पर सवाल खड़े किए और तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके ने तो राहुल गांधी स्टाइल में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए।
डीएमके के प्रवक्ता सर्वानन अन्नादुरई ने कहा कि असम में एसआईआर क्यों नहीं किया जा रहा है? एसआईआर की प्रक्रिया कब से नागरिकता जांचने की प्रक्रिया बन गई है? जबकि मुख्य चुनाव आयुक्त यह साफ-साफ कह चुके हैं कि असम में एनसीआर लागू है। वहां सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता जांच की प्रक्रिया पूरी होने वाली है। 24 जून का एसआईआर आदेश पूरे देश के लिए था, पर असम की विशेष परिस्थिति के कारण यह आदेश वहां लागू नहीं होता। असम के लिए अलग से पुनरीक्षण आदेश जारी किए जाएंगे और अलग एसआईआर तिथि की घोषणा की जाएगी। डीएमके प्रवक्ता ने साल 2003 को कटऑफ साल रखने पर सवाल उठाए और पूछा कि 2003 को ही क्यों आधार बनाया गया है। इससे किसे फायदा होगा। इसे लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। डीएमके ने कहा कि हम देख रहे हैं कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहा है और वोट चोरी में शामिल है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता इस समय सबसे कम है।
उधर, पश्चिम बंगाल में भी एसआईआर की प्रक्रिया शुरू होते ही सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इसे लेकर कहा, हम भी पारदर्शी मतदाता सूची के पक्ष में हैं। पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक तरीके से होगी, लेकिन अगर वैध मतदाता को परेशान किया गया तो हम इसका विरोध करेंगे। राज्य सरकार, राज्य धर्म निभाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव आयोग राजनीतिक दबाव में ऐसा कुछ नहीं करेगा कि हमें उसका विरोध करना पड़े।
पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता केया घोष ने कहा कि भाजपा का मानना है कि बंगाल में कोई भी फर्जी या अवैध मतदाता नहीं होना चाहिए। ममता बनर्जी की सरकार एसआईआर से इसलिए डर रही है क्योंकि उनके वोटबैंक में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए शामिल हैं। टीएमसी को डर है कि एसआईआर के बाद अवैध मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हट जाएंगे। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि चुनाव की गरिमा बनाए रखना और मतदाता सूची का पुनरीक्षण करना चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है और हम एसआईआर के दूसरे चरण का स्वागत करते हैं। लेकिन इंडी गठबंधन इसका विरोध कर रहा है, जबकि उन्होंने खुद ही महाराष्ट्र में स्थानीय चुनाव से पहले एसआईआर कराने की मांग की है। वे एसआईआर पर निशाना साधकर अपने परिवार को बचाना चाहते हैं। भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा कि देशहित के हर काम का विपक्षी पार्टियों द्वारा विरोध किया जाता है। एसआईआर की प्रक्रिया में किसी भी सही मतदाता का नाम नहीं कटेगा, लेकिन अैध और फर्जी मतदाताओं पर रोक लगेगी। कोई भी बांग्लादेशी भारत का मतदाता नहीं बन सकेगा। हम उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकारें इसमें सहयोग करेंगी और अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी।
चुनाव आयोग की घोषणा के मुताबिक विशेष गहन पुनरीक्षण के दूसरे चरण में 12 राज्यों का मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम 7 फरवरी 2026 तक पूरा हो जाएगा। यानि 7 फरवरी 2026 को नई मतदाता सूची सामने आ जाएगी। 12 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा होते ही सोमवार आधी रात से ही इन सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की मतदाता सूचियां फ्रीज कर दी गईं। फ्रीज की गई सूची के सभी मतदाताओं को बीएलओ विशिष्ट गणना प्रपत्र देंगे। इन गणना प्रपत्रों में वर्तमान मतदाता सूची के सभी आवश्यक विवरण होंगे। बीएलओ द्वारा मौजूदा मतदाताओं को प्रपत्र वितरित करने के बाद, जिन लोगों के नाम गणना प्रपत्रों में हैं, वे यह मिलान करने का प्रयास करेंगे कि क्या उनका नाम पिछले एसआईआर की सूची में था। यदि हां, तो उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है। वे सिर्फ प्रपत्र भरकर जमा कर दें। यदि उनके माता-पिता का नाम सूची में था, तब भी उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना। 2002 से 2004 तक के एसआईआर वाली मतदाता सूची आयोग की वेबसाइट पर कोई भी देख सकता है और मिलान कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए, चुनाव आयोग ने बिहार में एसआईआर से संबंधित अपने 9 सितंबर के आदेश के अनुसार, आधार कार्ड को 12 दस्तावेजों की सूची में शामिल कर लिया है। आधार पर स्थिति स्पष्ट करते हुए, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा, जहां तक आधार कार्ड का संबंध है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आधार का उपयोग आधार अधिनियम के अनुसार किया जाना है। आधार अधिनियम की धारा 9 कहती है कि आधार निवास या नागरिकता का प्रमाण नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार यह निर्णय दिया है कि आधार जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए, आधार प्राधिकरण ने अपनी अधिसूचना जारी की और आज भी, यदि आप नया आधार डाउनलोड करते हैं, तो कार्ड पर उल्लेख है कि यह न तो जन्मतिथि, न ही निवास या नागरिकता का प्रमाण है। आधार कार्ड पहचान का प्रमाण है और इसका उपयोग ई-हस्ताक्षर के लिए भी किया जा सकता है।
बिहार के अनुभव से लाभ उठाते हुए, चुनाव आयोग ने यह भी निर्णय लिया है कि बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) फॉर्मों के मिलान और लिंकिंग के लिए अधिकतम तीन बार घरों का दौरा करेंगे। कुमार ने कहा, यदि मतदाता उपलब्ध नहीं है या मिलान और लिंकिंग में देरी हो रही है, तो बीएलओ कुल तीन बार घरों का दौरा करेंगे। बीएलओ सिर्फ संबंधित राज्य ही नहीं बल्कि देश भर के मतदाता सूची की जांच कर यह देखेंगे के संबंधित व्यक्ति का नाम कहीं और तो नहीं है। यदि किसी अन्य सूची में नाम पाया गया तब भी उन्हें मतदाता माना जाएगा।
मतदाता ऑनलाइन भी फॉर्म भर सकते हैं। यदि उनके नाम, या उनके पिता या माता के नाम, 2003 की सूची में नहीं थे तो ईआरओ 12 दस्तावेजों के आधार पर पात्रता निर्धारित करेगा।आयोग द्वारा तय 12 दस्तावेजों के अलावा यदि किसी के पास अतिरिक्त वैध दस्तावेज है तो आयोग उसे भी मान्य करेगा। ईआरओ के फैसले के बाद, यानी अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद भी किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का कोई भी मतदाता या निवासी जिला मजिस्ट्रेट के पास अपील कर सकता है और 15 दिनों के भीतर राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी के पास अपनी दूसरी अपील भी दायर कर सकता है।
चुनाव आयोग ने मतदाता के लिए जरूरी अर्हताएं भी बताईं। इसके अनुसार संविधान की धारा 326 के अनुसार जो भी भारतीय नागरिक है, उसे 18 साल की आयु का होना, संबंधित क्षेत्र का निवासी होना, कानून के तहत किसी तरह के मामलों में वांछित नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को सूची में नाम शामिल कराने का अधिकार है। भीड़भाड़ से बचने के लिए, आयोग ने निर्णय लिया है कि किसी भी मतदान केंद्र पर 1,200 से ज्यादा मतदाता नहीं होंगे और ऊंची इमारतों, गेटेड कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों में नए मतदान केंद्र बनाए जाएंगे।
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी राजनीतिक दलों के साथ बैठकें करेंगे और उन्हें एसआईआर प्रक्रिया के बारे में जानकारी देंगे। बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) फॉर्मों के मिलान और लिंकिंग के लिए अधिकतम तीन बार घरों का दौरा करेंगे। बीएलओ सिर्फ संबंधित राज्य ही नहीं बल्कि देश भर के मतदाता सूची की जांच कर यह देखेंगे के संबंधित व्यक्ति का नाम कहीं और तो नहीं है। यदि किसी अन्य सूची में नाम पाया गया तब भी उन्हें मतदाता माना जाएगा।
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