ताजमहल का विवाद नहीं, यह मवाद है..!

परेश रावल की फिल्म द ताज स्टोरी से इतिहास की खामियां ताजा हुईं

ताजमहल का विवाद नहीं, यह मवाद है..!

राजा जयसिंह के महल और मंदिर पर बनी थी मुमताज की कब्रगाह

महल इस्लामिक शब्द नहीं, फिर मुमताजमहल क्यों नहीं रखा नाम?

ताजमहल 1653 में बना, मुमताज की मृत्यु 1631 में ही हो गई थी

शुभ-लाभ सरोकार

परेश रावल की फिल्म द ताज स्टोरी पर चर्चा हो रही है। चर्चा हो रही है, लेकिन समाधान नहीं हो रहा है। इतिहास की गलतियों को सुधारने के बजाय इतिहास की गलतियों को सहने और स्वीकारने की सीख दी जा रही है। भारत के लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि ताजमहल का विवाद, विवाद नहीं, भारत के शरीर से रिसता मवाद है, जिसका इलाज समय पर हो जाना चाहिए। ताजमहल राजा जयसिंह के मंदिर या जमीन पर बना था, इससे किसी को इन्कार नहीं है, लेकिन देश की पीढ़ियों को समझाने की कोशिश की जा रही है कि शाहजहां ने जयसिंह से जमीन ली थी और उसके बदले में जयसिंह को चार महल दिए थे। यह कुतर्क खड़ा कर इतिहास पर कालिख पोतने का काम किया गया है। ताजमहल की ऐतिहासिक असलियत के पन्ने हम आगे खोलेंगे, अभी परेश रावल की फिल्म द ताज स्टोरी की बात करते हैं।

किसी फिल्म से दर्शकों के एक वर्ग को नाराज करने के लिए प्रतिभा की जरूरत होती है। और फिल्म से हर वर्ग के सिनेमा प्रेमियों को नाराज करने के लिए विशेष प्रतिभा की जरूरत होती है। परेश रावल की कोर्टरूम ड्रामा द ताज स्टोरीठीक यही करने में कामयाब रही है। द ताज स्टोरी ने सबसे पहले सोशल मीडिया का ध्यान तब खींचा जब हिंदी फिल्म के मोशन पोस्टर में ताजमहल के गुंबद से भगवान शिव की मूर्ति निकलती दिखाई गई।

इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं। सबसे पहले यह कि मुख्य गुम्बद के किरीट पर जो कलश वह हिंदू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश आरंभिक 1800 ईस्वी तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। आज भी हिंदू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है। यह हिंदू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चंद्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती हैजो कि हिंदू भगवान शिव का चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।

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ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू हुआ और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में ही हो गया तो फिर उसे कहां दफनाया गया? स्पष्ट है कि मुमताज को ताजमहल में नहीं दफनाया गया। इससे यह भी स्पष्ट है कि ताजमहल को लेकर अंग्रेज, मुस्लिम और नस्लदूषित प्रगतिशील इतिहासकारों ने मनगढ़ंत कहानियां लिख कर पीढ़ियों को गुमराह किया। तथ्य यह है कि 1632 में हिंदू मंदिर को इस्लामिक स्वरूप देने का काम शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिंदू शैली का छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है। आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।

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इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने लिखा है कि मुमताज की मृत्यु के सात साल बाद जेए मांडेलस्लो के वॉयजेज एंड ट्रैवेल्स टू द ईस्ट इंडीज़ नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरा का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टॉम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो मांडेलस्लो उस विशाल निर्माण कार्य का उल्लेख अवश्य करता। ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े की एक अमेरिकन प्रयोगशाला में की गई कार्बन जांच से पता चला है कि लकड़ी का वह टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का हैक्योंकि ताज के दरवाजों को 11वीं सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिए दूसरे दरवाजे भी लगाए गए हैं। ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

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ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिंदू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं। कब्र के ऊपर गुंबद के मध्य से अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल सिंचन करने वाला सुवर्ण कलश इसी जंजीर पर टंगा रहता था। उसे निकालकर जब शाहजहां के खजाने में जमा करा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गई। उस पर लॉर्ड कर्जन ने एक दीप लटकवा दियाजो आज भी है।

कब्रगाह को महल क्यों कहा गयामकबरे को महल क्यों कहा गयाक्या किसी ने इस पर कभी सोचाक्योंकि पहले से ही निर्मित एक महल को कब्रगाह में बदल दिया गया। कब्रगाह में बदलते वक्त उसका नाम नहीं बदला गया। यहीं पर शाहजहां से गलती हो गई। उस काल के किसी भी सरकारी या शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। इतिहासकार पुरुषोत्तम लिखते हैं कि महल शब्द मुस्लिम शब्द नहीं है। अरबईरानअफगानिस्तान आदि जगह पर एक भी ऐसी मस्जिद या कब्र नहीं है जिसके बाद महल लगाया गया हो। यह भी गलत है कि मुमताज के कारण इसका नाम मुमताज महल पड़ाक्योंकि उनकी बेगम का नाम मुमता-उल-जमानी था। यदि मुमताज के नाम पर इसका नाम रखा होता तो ताजमहल के आगे से मुम को हटा देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता।

विंसेंट स्मिथ अपनी पुस्तक अकबर द ग्रेट मुगल में लिखते हैंबाबर ने सन् 1630 में आगरा के वाटिका वाले महल में अपने उपद्रवी जीवन से मुक्ति पाई। वाटिका वाला वह महल यही ताजमहल था। यह इतना विशाल और भव्य था कि इसके जितना दूसरा कोई भारत में महल नहीं था। बाबर की पुत्री गुलबदन ने हुमायूंनामा नामक अपने ऐतिहासिक वृत्तांत में ताज का संदर्भ रहस्य महल के नाम से किया है।

प्राप्त सबूतों के आधार पर पता चलता है कि ताजमहल का निर्माण राजा परमर्दिदेव के शासनकाल में 1155 अश्विन शुक्ल पंचमीरविवार को हुआ था। जिसे बाद में मुहम्मद गौरी सहित कई मुस्लिम आक्रांताओं ने ताजमहल के द्वार आदि को तोड़कर उसको लूटा। यह महल आज के ताजमहल से कई गुना ज्यादा बड़ा था और इसके तीन गुम्बद हुआ करते थे। हिंदुओं ने उसे फिर से मरम्मत करके बनवायालेकिन वे ज्यादा समय तक इस महल की रक्षा नहीं कर सके। पुरषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर शोधकार्य करके बताया कि ताजमहल को पहले तेजो महालय कहते थे। वर्तमान ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका पुनरनिर्माण किया गया है। इसकी मीनारें बहुत बाद के काल में निर्मित की गईं। वास्तुकला के विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में तेज-लिंग का वर्णन आता है। ताजमहल में तेज-लिंग प्रतिष्ठित था इसीलिए उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।

आगरा को प्राचीनकाल में अंगिरा कहते थेक्योंकि यह ऋषि अंगिरा की तपोभूमि थी। अंगिरा ऋषि भगवान शिव के उपासक थे। बहुत प्राचीन काल से ही आगरा में 5 शिव मंदिर बने थे। यहां के निवासी सदियों से इन 5 शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करते थे। लेकिन अब कुछ सदियों से बालकेश्वरपृथ्वीनाथमनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल 4 ही शिव मंदिर शेष हैं। 5वें शिव मंदिर को सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। स्पष्टतः वह 5वां शिव मंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही हैंजो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

शाहजहां ने तेजोमहल में जो तोड़फोड़ और हेराफेरी कीउसका एक सूत्र सन् 1874 में प्रकाशित पुरातत्व खाते (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के वार्षिक वृत्त के चौथे खंड में पृष्ठ 216 से 17 पर अंकित है। उसमें लिखा है कि हाल में आगरा के वास्तु संग्रहालय के आंगन में जो चौखुटा काले बसस्ट का प्रस्तर स्तंभ खड़ा है वह स्तंभ तथा उसी की जोड़ी का दूसरा स्तंभ उसके शिखर तथा चबूतरे सहित कभी ताजमहल के उद्यान में प्रस्थापित थे। इससे स्पष्ट है कि लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में जो शिलालेख है वह भी काले पत्थर का होने से ताजमहल के उद्यान मंडप में प्रदर्शित था। हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना हैजो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज थाजैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है।

ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है। जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊंची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाए गए हैं। ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैंजो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। हिंदू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है। बौद्धकाल में इसी तरह के शिव मंदिरों का अधिक निर्माण हुआ था। ताजमहल का गुम्बज कमल की आकृति से अलंकृत है। आज हजारों ऐसे हिंदू मंदिर हैंजो कि कमल की आकृति से अलंकृत हैं।

ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था। ताजमहल की चारों मीनारें बाद में बनाई गईं। इतिहासकार ओक के अनुसार ताज एक सात मंजिला भवन है। शहजादे औरंगजेब के शाहजहां को लिखे पत्र में भी इस बात का विवरण है। भवन की चार मंजिलें संगमरमर पत्थरों से बनी हैं जिनमें चबूतराचबूतरे के ऊपर विशाल वृत्तीय मुख्य कक्ष और तहखाने का कक्ष शामिल है। मध्य में दो मंजिलें और हैं जिनमें 12 से 15 विशाल कक्ष हैं। संगमरमर की इन चार मंजिलों के नीचे लाल पत्थरों से बनी दो और मंजिलें हैंजो कि पिछवाड़े में नदी तट तक चली जाती हैं। सातवीं मंजिल अवश्य ही नदी तट से लगी भूमि के नीचे होनी चाहिएक्योंकि सभी प्राचीन हिंदू भवनों में भूमिगत मंजिल हुआ करती है।

नदी तट के भाग में संगमरमर की नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहजहां ने चुनवा दिया है। इन कमरों कोजिन्हें कि शाहजहां ने अतिगोपनीय बना दिया हैभारत के पुरातत्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों। ताजमहल की सातों मंजिलों को खोलकर साफ-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता है, ताकि यह पता चल सके कि उसमें मुमताज के अलावा और कौन-कौन से तथ्य दफ्न हैं। फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थीक्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करतापरंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।

जहां तक राजा जयसिंह द्वारा ताजमहल की जमीन तोहफे में दिए जाने का प्रसंग है, तो कोई किसी को मंदिर तोहफे में नहीं देता। पुरुषोत्तम ओक के अनुसार बादशाहनामाजो कि शाहजहां के दरबार के लेखा-जोखा की पुस्तक हैमें स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदारबड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्बज) लिया गयाजो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। जयपुर के पूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर1633 को जारी किए गए शाहजहां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फरमानों (नए क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिए घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।

बहरहाल इतिहास के उन सत्य और असत्य प्रसंगों से होते हुए तुषार अमरीश गोयल निर्देशित फिल्म द ताज स्टोरी पर फिर से आते हैं। ताज स्टोरी के निर्माताओं ने 29 सितंबर को सोशल मीडिया पर इसका मोशन पोस्टर जारी कियाजिसके बाद कई लोगों ने निर्माताओं पर मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा निर्मित इस स्मारक के पुराने हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाए जाने के विवादास्पद दावों को हवा देने का आरोप लगाया। परेश रावल ताजमहल में विष्णु दास नामक एक स्थानीय गाइड का मुख्य किरदार निभा रहे हैंजो विरोध प्रदर्शनों के बीच ताजमहल के डीएनए परीक्षण की मांग को लेकर अदालत जाते हैं। अक्टूबर को फिल्म का टीजर रिलीज हुआ जिसमें परेश रावल का किरदार कहता है कि कुछ लोगों के लिए ताजमहल एक मकबरा है, जबकि कुछ के लिए यह एक मंदिर है। फिर वह दर्शकों के सामने सवाल उठाते हैंआपको क्या लगता हैइसकी कहानी क्या हैयह फिल्म स्मारक पर आस्था और प्रलेखित इतिहास के बीच चल रही बहस को उजागर करती है। विष्णु दास ताजमहल के खिलाफ मुकदमा दाखिल करते हैं और जल्द ही अदालती लड़ाई में तीखे शब्दों के युद्ध में उलझते हुए दिखाई देते हैंजहां वह ताजमहल की उत्पत्ति पर सवाल उठाते हैं।

फिल्म में परेश रावल द्वारा अभिनित विष्णु दास लोकप्रिय ऐतिहासिक स्मारक के सामने हाथ जोड़कर झुकते हैं और फिर एक दुकानदार से कहते हैं कि वह ताजमहल देखने आए हैंजिसे उन्होंने मंदिर बताया था। विष्णु दास एक गवाह से पूछते हैं कि क्या वह ताजमहल के नीचे 22 कमरों में गया थावे इसे मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा अपनी दिवंगत पत्नी मुमताज महल के लिए बनवाए गए प्रेम के प्रतीक के बजाय अत्याचार और नरसंहार का प्रतीक भी कहते हैं।

अयोध्या से भाजपा प्रवक्ता रजनीश सिंह ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सेंसर बोर्ड को दी गई अपनी शिकायत में द ताज स्टोरी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उनका दावा है कि यह 2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके द्वारा दाखिल एक याचिका के विषय पर आधारित है। याचिका में रजनीश सिंह ने उच्च न्यायालय से ताजमहल के अंदर बंद 22 कमरों को खोलने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। उन्होंने दावा किया था कि यह स्मारक मूल रूप से एक मंदिर था। अबअपनी शिकायत मेंभाजपा नेता ने कहामैंने ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलने के लिए एक जनहित याचिका दाखिल की थी। मेरा उद्देश्य केवल पारदर्शिता सुनिश्चित करना और ऐतिहासिक तथ्यों का सत्यापन सुनिश्चित करना था। मुझे पता चला है कि फिल्म द ताज स्टोरी मेरी याचिका के विषय पर आधारित है। रजनीश सिंह ने यह भी दावा किया कि फिल्म के पोस्टरप्रचार सामग्री और कहानी में न्यायिक विषय और याचिका का संदर्भ उनकी अनुमति के बिना भ्रामक तरीके से दिया गया है। उन्होंने इसे मेरे बौद्धिक और कानूनी अधिकारों का उल्लंघन बताया। उन्होंने यह भी मांग की कि द ताज स्टोरी की स्क्रीनिंग न केवल न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैबल्कि सामाजिक और धार्मिक भावनाओं में अनावश्यक तनाव भी पैदा कर सकती है।

वकील शकील अब्बास को भी इसी फिल्म से आपत्ति है। शकील अब्बास ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि द ताज स्टोरी ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ सकती है। लेकिन इतिहास से छुपाया गया तथ्य बाहर तो आना ही चाहिए...

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