पीएमओ तक पहुंचा बिजली के निजीकरण का विवाद

उपभोक्ता परिषद ने खामियां गिनाते हुए भेजा प्रस्ताव

 पीएमओ तक पहुंचा बिजली के निजीकरण का विवाद

लखनऊ06 नवंबर (एजेंसियां)। यूपी में बिजली के निजीकरण का मुद्दा अब बड़ा बनता जा रहा है। सीएम योगी से दखल की मांग करने के बाद अब परिषद ने पीएमओ को पत्र भेजा है। प्रदेश में निजीकरण व सुधार के नाम पर किए जा रहे नए प्रयोगों से उपभोक्ताओं की समस्याएं घटने के बजाय बढ़ने लगी हैं। यह आरोप लगाते हुए राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्र भेजा है। सुधार के सुझाव भी दिए हैं। इसे सात नवंबर को पीएमओ में होने वाली ऊर्जा सुधार बैठक में शामिल करने की मांग की है।

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे पत्र में बताया कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 1934 में कहा था कि बिजली हमेशा सरकारी क्षेत्र में रहनी चाहिए। सस्ती नहीं बल्कि बहुत सस्ती होनी चाहिए। इसलिए केंद्र सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि संविधान निर्माता के बताए हुए रास्ते पर चलें। देश में बिजली सस्ती करने की दिशा में कार्य करने की जरूरत है। पत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नई विद्युत वितरण सुधार योजना का विरोध किया गया है। मांग की गई है कि इसे उपभोक्ता हितैषी बनाया जाए।

परिषद ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि यह योजना सुधार नहींबल्कि एक और वित्तीय बेलआउट (ऋण पुनर्गठन) हैजिसका पहला शर्त निजीकरण को बढ़ावा देना एवं बिजली दरों में वृद्धि करना हैजो पूर्णतः उपभोक्ता विरोधी कदम हैं। इस बैठक में उत्तर प्रदेश पाॅवर कारपोरेशन के अध्यक्ष व अपर मुख्य सचिव ऊर्जा भी हिस्सा लेंगे। उत्तर प्रदेश का ऊर्जा प्रबंध पहले से ही निजीकरण का पक्षधर है। इसलिए वह निजीकरण के पक्ष में ही जानकारी देगा। वर्मा ने कहा कि हर पांच वर्ष में नई-नई योजनाएं जैसे एपीडीआरपीआर-एपीडीआरपीएफआरपीउदयआरडीएसएस आदि लाई जाती हैंलेकिन वास्तविक सुधार जैसे वितरण दक्षता में सुधारहानि नियंत्रणसमय पर सब्सिडी भुगतानऔर जवाबदेही तय करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। इस वजह से भी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

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