रूस से बेरोकटोक जारी रहेगा भारत का व्यापार

 भारत ने अमेरिका को सुना दिया अपना स्पष्ट निर्णय

रूस से बेरोकटोक जारी रहेगा भारत का व्यापार

मजबूत इरादों को डिगा नहीं सकता बाहरी दबाव

नई दिल्ली, 06 अगस्त (एजेंसियां)। टैरिफ की बंदर घुड़कियों में उलझे अमेरिका को भारत ने साफ तौर पर अपना निर्णय सुना दिया है। भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि रूप से भारत का व्यापार बिना किसी दबाव के बेरोकटोक जारी रहेगा। भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि बाहरी दबाव मजबूत इरादों को डिगा नहीं सकते।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते भारत पर पच्चीस फीसद शुल्क लगाने और रूस से तेल एवं गैस खरीदने पर जुर्माना लगाने का ऐलान किया था। निश्चित तौर पर यह भारत पर अनावश्यक दबाव बनाने की रणनीति है। मगर अमेरिका की उम्मीदों के उलट भारत ने अपने रुख को और सख्त कर स्पष्ट कर दिया है कि जब राष्ट्रहित का मसला हो तो कोई बाहरी दबाव मजबूत इरादों को लक्ष्य से डिगा नहीं सकता है। भारत ने साफ कहा है कि रूस से तेल खरीदने के लिए शुल्क बढ़ाने की चेतावनी अनुचित और अव्यावहारिक है।

यही नहींभारत ने दुनिया के सामने इस बात को भी उजागर किया है कि अमेरिका किस तरह दोहरे मापदंड अपनाकर अपने हितों को साधने की चेष्टा कर रहा है। असल में इस तरह का प्रयास किसी भी देश की राष्ट्रीय संप्रभुता पर अतिक्रमण और उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना है। दूसरी ओर रूस ने भी अमेरिका के इस कदम को वैश्विक दक्षिण देशों के खिलाफ नव-उपनिवेशवादी नीति करार देकर और इन देशों के साथ सहयोग बढ़ाने की इच्छा व्यक्त कर साफ कर दिया है कि अब दुनिया बहुध्रुवीय व्यवस्था की पक्षधर है।

भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ पर पलटवार करते हुए रूस के साथ उनके व्यापारिक संबंधों की ओर ध्यान दिलाया है। विदेश मंत्रालय ने रूस के साथ ऊर्जा संबंधों की आलोचना को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि अमेरिका खुद अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइडविद्युत वाहन उद्योग के लिए पैलेडियमउर्वरक और रसायनों का आयात करता है। वहींयूरोपीय संघ इस मामले में दो कदम आगे है। वर्ष 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ 67.5 अरब यूरो का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।

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वर्ष 2023 में इसमें सेवाओं से जुड़ा व्यापार लगभग 17.2 अरब यूरो आंका गया। यह उस वर्ष या उसके बाद रूस के साथ भारत के कुल व्यापार से काफी अधिक है। वास्तव में वर्ष 2024 में एलएनजी का यूरोपीय आयात रेकार्ड 16.5 मिलियन टन तक पहुंच गयाजो 2022 में 15.21 मिलियन टन से कहीं अधिक है। ऐसे में सवाल है कि जो देश खुद रूस से तेल-गैस और अन्य सामग्री खरीद रहे हैंवे किसी अन्य देश को रूस से व्यापार करने से कैसे रोक सकते हैंक्या यह दोहरे मापदंडों का प्रदर्शन नहीं है?

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अमेरिका की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि रूस भारत को कच्चे तेल की बिक्री से अर्जित धन का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में कर रहा है। मगर इस बात की क्या गारंटी है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की ओर से रूस से जो सामग्री खरीदी जा रही हैउससे मिले धन का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में नहीं हो रहा हैजाहिर हैअमेरिका दोहरे मापदंड अपनाकर अपने भू-राजनीतिक हित साधना चाहता है।

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दरअसलवह उभरती विश्व व्यवस्था में अपने आधिपत्य को नुकसान से चिंतित है। भारतीय विदेश मंत्रालय का साफ कहना है कि रूस से कच्चे तेल का जो आयात किया जाता हैउसका उद्देश्य देश में उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा की लागत को किफायती बनाए रखना है। किसी भी देश के लिए उसकी घरेलू जरूरतों को पूरा करना उसका प्राथमिक कर्तव्य होता है। ऐसे में भारत का अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा के लिए हर संभव आवश्यक उपाय करना स्वाभाविक है।

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