बलूचिस्तान के लोगों को ट्रंप ने दिया झटका
पाकिस्तान को शह देने की पुरानी गलतियां दोहरा रहा अमेरिका
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को आतंकवादी घोषित किया
पं. नेहरू के ढीलेपन से पाकिस्तान को मिला बलूचिस्तान
वाशिंगटन, 13 अगस्त (एजेंसियां)। आतंकवाद को लेकर दोगली परिभाषाएं गढ़ने वाला अमेरिका पाकिस्तान को फिर से शह देकर अपनी पुरानी गलतियां दोहरा रहा है। अमेरिका इन गलतियों का खामियाजा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भुगत चुका है, लेकिन दूसरे सत्र में मानसिक संतुलन ठीक नहीं रख पा रहे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर से उन्हीं पुरानी गलतियों पर अमेरिका को ला रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को आतंकवादी संगठन घोषित कर बलूचियों के साथ ठीक वैसा ही धोखा दिया है जैसा तालीबान के साथ दिया था।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और उससे जुड़ी मजीद ब्रिगेड को आतंकी संगठन घोषित करने के पहले अमेरिका ने पाकिस्तान के तेल भंडार को विकसित करने का समझौता किया। बलूचिस्तान में पाकिस्तान का तेल और गैस भंडार है जिसका नए सिरे से दोहन करने की तैयारी है। बीएलए इस इलाके के आर्थिक शोषण का विरोध करता रहा है। अमेरिका ने 11 अगस्त को बलूच लिबरेशन आर्मी और मजीद ब्रिगेड को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है। इसकी घोषणा अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने की। बलूच समूहों ने अमेरिकी आतंकवाद के टैग को खारिज करते हुए इसे आत्मनिर्णय की लड़ाई बताया है, क्योंकि ट्रंप के पाकिस्तान तेल समझौते से इस क्षेत्र में अमेरिका की और अधिक भागीदारी की आशंका बढ़ गई है, जो पहले से ही संसाधन दोहन और राजनीतिक अशांति से ग्रस्त है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ और अतिरिक्त दंड के पहले दौर की घोषणा के कुछ ही घंटे बाद पाकिस्तान के तेल भंडार को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए इस्लामाबाद के साथ एक नए व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया। दिलचस्प यह है कि ट्रंप ने कहा कि किसी दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेच सकता है।
कूटनीतिक जगत के जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर द्वारा की गई काफी मिन्नतों के बाद ट्रंप ने बीएलए को आतंकी संगठन घोषित किया। बलूचियों का कहना है कि अमेरिका के पैर पकड़कर पाकिस्तान ने यह घोषणा हासिल की है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बताया कि बीएलए को आतंकवादी संगठन घोषित करने का निर्णय 2019 में शुरू हुए एक के बाद एक आतंकी हमलों और हाल में कराची और ग्वादर में आत्मघाती हमलों के आधार पर लिया गया है।
बलूच मानवाधिकार कार्यकर्ता मीर यार बलूच ने इस निर्णय की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि बलूच आतंकी नहीं, बल्कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के शिकार हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, बलूच नेताओं को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया है। महरंग बलूच, बेबर्ग जेहरी जैसे कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया गया है। इधर पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं और सार्वजनिक रूप से लोगों के एक जगह इकट्ठे होने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम बलूचों की आवाज दबाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। ऐसी अनेक रिपोर्ट हैं कि बलूच नेताओं को जेलों में बिना आरोप के रखा गया है, जहां से उन्हें जमानत तक नहीं लेने दी जा रही है, उन्हें उनके परिवारों से मिलने नहीं दिया गया है।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी साल 2000 के दशक में अस्तित्व में आई थी। यह संगठन पाकिस्तान से बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग करता है। इस संगठन की फिदायीन इकाई, मजीद ब्रिगेड नौजवान बलूचों को कड़ा प्रशिक्षण देकर फिदायीन हमलों के लिए तैयार करती है। इसका नाम बलूच स्वतंत्रता सेनानियों लांगो और मजीद के नाम पर रखा गया है। बलूच समुदाय से शरी बलूच, सुमैया कलंदरानी जैसी महिलाएं भी मजीद ब्रिगेड में शामिल हैं, जो बलूच आंदोलन में एक नया मोड़ आने का संकेत देता है।
बलूच नेता मीर यार बलूच ने कहा है कि बलूच लोगों ने कभी अमेरिकी हितों पर हमला नहीं किया। इसके उलट, पाकिस्तान ने आतंकवादियों को पनाह दी और अमेरिका विरोधी रैलियां आयोजित कीं। इस ओर पाकिस्तान का दोहरा रवैया रहा है। बलूच कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद को बढ़ावा देता है, लेकिन बलूचों को आतंकी घोषित कर लोकतांत्रिक आवाज को दबाना चाहता है।
उधर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के हमलों ने चीन को भी चिंतित किया हुआ है। पिछले दिनों जाफर एक्सप्रेस के अपहरण ने चीन को आतंकवाद विरोधी सहयोग की पेशकश करने पर मजबूर किया था। बलूचिस्तान में पाकिस्तान का दमन और अमेरिका द्वारा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को आतंकी संगठन घोषित करना एक जटिल अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य बन गया है। जहां पाकिस्तान इसे अपनी कूटनीतिक जीत मानता है, वहीं बलूच कार्यकर्ता इसे अन्यायपूर्ण और दोहरे मानदंडों का उदाहरण बताते हैं। बलूच आंदोलन अब सिर्फ एक इलाकाई विद्रोह नहीं, बल्कि मानवाधिकार, लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय न्याय मांगता आंदोलन बन चुका है।
बलूचिस्तान वो इलाका है जो पाकिस्तान को ईरान और अफगानिस्तान से जोड़ता है। बलूचिस्तान को अलग देश बनाने की मांग होती है। ये पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिस्सा है। पाकिस्तान ने बलूचियों के साथ काफी दुर्व्यवहार किया जाता रहा है। पाकिस्तानी फौज की दमनकारी नीति, आर्थिक और सामाजिक शोषण की वजह से बलूचिस्तानी की आजादी की मांग को लेकर बलूच लिबरेशन आर्मी का गठन किया गया। इससे जुड़ा माजिद ब्रिगेड भी है। 1948 में पाकिस्तान ने इस प्रांत को अपने में मिला लिया था। ये पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन आबादी सबसे कम है। 2023 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान की आबादी करीब 24 करोड़ है, लेकिन बलूचिस्तान की आबादी मात्र 1.5 करोड़ है।
बलूच 1948 से ही पाकिस्तान से आजादी की मांग करते आ रहे हैं। उनके राजा को धोखा देकर पाकिस्तान ने इलाके पर कब्जा किया था। दरअसल जब भारत का बंटवारा हुआ और प्रांतों को भारत या पाकिस्तान या फिर आजाद रहने का विकल्प दिया गया तो बलूचिस्तान ने फैसला नहीं लिया था कि उसे किसके साथ जाना है या अलग मुल्क बन कर रहना है। स्थिति का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने राजा अहमद यार खान को मजबूर किया कि वह पाकिस्तान में अपने रियासत कलात का विलय कर दें। हालांकि इसके खिलाफ पहला विद्रोह 1948 में ही हो गया था।
तिलक देवाशर की किताब द बलूचिस्तान कोरंड्रम के अनुसार, कलात के खान ने अंग्रेजों से कहा था कि वह आजाद रहना चाहते हैं। इसको लेकर दस्तावेज भी अंग्रेजों द्वारा भेजे गए कैबिनेट मिशन को दिए थे। मजे की बात यह है कि इस काम में मोहम्मद अली जिन्ना ने उनकी सहायता की थी। जिन्ना कलात के खान के वकील थे। कलात के खान और कलात के प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री की 1947 में बलूचिस्तान के भविष्य को लेकर बैठक हुई थी। हमद यार खान ने कहा कि पाकिस्तान में शामिल होना जनता के विरोध के कारण चुनौतीपूर्ण था। इसके अलावा भारत वाले विकल्प को पाकिस्तान की चिंताओं पर नकार दिया गया था।
अहमद यार खान ने दावा किया कि नेहरू उनसे नफरत करते थे और कांग्रेस ने कभी उन पर भरोसा नहीं किया। कलात के विदेश मंत्री डगलस येट्स फेल ईरान में शामिल होने के पक्ष में थे। उन्होंने इसे बलोच एकता के लिए फायदेमंद करार दिया था। गौरतलब है कि बड़ी बलोच आबादी ईरान में रहती है। हालांकि, कलात के खान अफगानिस्तान में भी शामिल होने के पक्ष में थे लेकिन इस पर भी नहीं बात बन पाई। अंत में लंदन वाला विकल्प भी नकार दिया गया। इसके बाद कलात के खान के पास कोई विकल्प शेष नहीं बचे थे। इसी बीच पाकिस्तान ने लासबेला, मकरान और खरान को मिला लिया। अब कलात बीच में फंस गया और उसके पाकिस्तान में मिलने के सिवा कोई चारा न रहा। बलूच के पाकिस्तान में मिलने में नेहरू के ढीलेढाले रवैये का अहम रोल था।
बलूचियों का कहना है कि पाकिस्तानी सरकार ने अब तक सिर्फ इस प्रांत को लूटा है और लोगों की उपेक्षा की है। मिनरल्स से भरपूर इस प्रांत में कोयला,सोना, तांबा, गैस की बहुतायत है। फिर भी पाकिस्तान जैसे भिखारी देश का ये सबसे गरीब इलाका है। आज भी पाकिस्तान का सबसे बड़ा बंदरगाह ग्वादर इसी क्षेत्र में है। ये चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी के लिए काफी अहम है। बलूचिस्तान के सुई इलाके में 1950 के ही दशक में गैस का पता चला था। इस गैस की लूट मचा दी गई। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में इस गैस की सप्लाई नहीं दी बल्कि पंजाब और सिंध तक पहुंचाई। यहां तक कि 1990 का दशक आते-आते यह गैस लगभग खत्म हो गई। इसके बाद पाकिस्तान के हुक्मरानों ने बलूचिस्तान में जमीन बेच दी। वर्तमान में बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह और एयरपोर्ट चीन के अधीन है। स्थानीय लोग इसका विरोध करते हैं।
बलूचिस्तान में अयस्क और खनिज भरे हुए हैं। पाकिस्तान ने यह भी चीन को लगभग बेच दिए हैं। इससे भी बलोच लोगों में गुस्सा है। बलूचिस्तान में स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी पाकिस्तान ने नहीं पहुंचाई हैं। ऐसे में विद्रोह के लिए लोग मजबूर हो रहे हैं। बलोच महिलाएं भी इस विद्रोह में शामिल हैं। इन महिलाओं को पाकिस्तानी फौज ने अत्याचार का शिकार बनाया है। पाकिस्तान द्वार कब्जा कर लिए जाने के बाद बलूचियों ने अलग राष्ट्र की स्थापना के लिए संघर्षरत रहे हैं। इनका कहना है कि प्रांत के संसाधनों का बड़ा हिस्सा उनके प्रांत के काम आना चाहिए। 2000 के दशक में बलूचिस्तान की आजादी की मांग को लेकर बीएलए यानी बलूच लिबरेशन आर्मी की स्थापना की गई। बलूच राष्ट्रवादी नेता नवाब खैर बख्श मर्री के बेटे बलाच मर्री ने इसकी स्थापना की।
बलूचिस्तान में विद्रोह को दबाने के लिए पाकिस्तानी फौज ने प्रदर्शन करने वाले निर्दोष बलूचों पर हवाई हमले किए। उनपर गोलियां बरसाईं। 2006 में बलूच के बड़े नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या पाकिस्तानी फौजी शासक परवेज मुशर्रफ ने करवा दी। उनके शव तक को परिवार को नहीं सौंपा। इसके बाद बलोच और भी भड़क गए। पाकिस्तानी सरकार एक के बाद एक बलूची नेताओं की हत्या करने लगे। एक साल बाद बलूची नेता बलाच मरी की भी हत्या कर दी गई। पाकिस्तानी हुक्मरान ने बीएलए पर प्रतिबंध लगा दिया। ये विद्रोह 2005 में उस वक्त और ज्यादा भड़क गई जब बलूचिस्तान में तैनात एक फौज के मेजर ने एक बलोच लड़की के साथ बलात्कार किया। उस पर कार्रवाई करने के बजाय परवेज मुशर्रफ ने उसे बचाया और बलोच लोगों को धमकाया।
बीएलए प्रतिबंध के बावजूद पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को लेकर संघर्ष कर रहा है। बशीर जैब बलूच बीएलए ने फिलहाल नेतृत्वकर्ता माने जाते हैं। संगठन में महिलाओं को भी शामिल किया गया है। माजिद ब्रिगेड का नेतृत्व हम्माल रेहान के हाथों में है। संगठन की ट्रेनिंग में रहमान गुल बलूच का अहम रोल है। वो पाकिस्तानी फौज के पूर्व अधिकारी हैं। बीएलए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी का विरोधी है। संगठन का मानना है कि ये आर्थिक शोषण के लिए बनाया गया है। इसलिए पाकिस्तान में हुए कई हमलों को बीएलए ने अंजाम दिया है। 2024 में कराची हवाई अड्डा और ग्वादर बंदरगाह प्राधिकरण के परिसर में हमला शामिल है। 2025 में क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर बीएलए ने किया था। 2018 में पाकिस्तान स्थित चीन के वाणिज्य दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी संगठन ने ली थी। बलूचिस्तान में 5 बार बड़े विद्रोह की आग भड़क चुकी है। अगर 1980-90 का दशक छोड़ दिया जाए तो अब तक लगातार हर दशक में बलूच विद्रोही उठ खड़े हुए हैं। वर्तमान में बलूचिस्तान में चल रही लड़ाई की चिंगारी 2005 में भड़की थी। तब से पाकिस्तानी फौज के साथ बलूच लिबरेशन आर्मी की टक्कर होती रहती है।
#अमेरिका, #पाकिस्तान, #बलूचिस्तान, #ट्रंप, #बलूचिस्तानलिबरेशनआर्मी, #आतंकवाद, #नेहरू, #भारतपाकिस्तान, #विदेशनीति, #USPakistanRelations