नौकरशाहों का 'आतंकवाद'
जम्मू-कश्मीर में सौ करोड़ से अधिक का शस्त्र लाइसेंस घोटाला
घोटाले में लिप्त 13 आईएएस और तीन केएएस अफसर
गृह मंत्रालय ने आठ आईएएस अफसरों का सीबीआई से मांगा ब्यौरा
नई दिल्ली/श्रीनगर, 14 अक्टूबर (एजेंसियां)। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के गन लाइसेंस घोटाले में लिप्त आठ वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है। गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से घोटाले में लिप्त आईएएस अफसरों और हथियार डीलरों के लिंक और पैसे के लेनदेन (मनी-ट्रेल) का पूरा ब्यौरा तलब किया है। 2012 से 2016 के बीच करोड़ों के शस्त्र लाइसेंस घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है।
गृह मंत्रालय ने सीबीआई को दिए निर्देश-पत्र में यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या इन अधिकारियों को अवैध हथियार लाइसेंस जारी करने के बदले किसी प्रकार का आर्थिक लाभ मिला था? मंत्रालय ने यह भी पूछा है कि क्या जांच में किसी आईएएस अधिकारी द्वारा हथियार डीलरों के साथ वित्तीय लेनदेन या संपत्ति के सौदे के सबूत मिले हैं? जम्मू कश्मीर शस्त्र लाइसेंस घोटाले की जड़ें 2017 में राजस्थान की एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) की एक जांच से जुड़ी हैं। एटीएस ने अपनी जांच में पाया कि जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हथियारों के लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। जांच में खुलासा हुआ कि 2012 से 2016 के बीच करीब 2.74 लाख हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए, जिनमें से 95 प्रतिशत लाइसेंस ऐसे लोगों को मिले जो जम्मू-कश्मीर के निवासी ही नहीं थे और न ही कभी वहां तैनात थे। सीबीआई के अनुसार, इन लाइसेंसों का अधिकांश हिस्सा आर्म्ड फोर्सेज, पैरामिलिट्री कर्मियों और अन्य बाहरी व्यक्तियों को पैसों के बदले जारी किया गया था। अनुमान है कि यह घोटाला 100 करोड़ से अधिक का है।
सीबीआई ने नौ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच की थी, जिनमें से आठ के खिलाफ अभियोजन (प्रोजिक्यूशन) की अनुमति गृह मंत्रालय से मांगी गई है। ये सभी अफसर 2012 से 2016 के बीच जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के विभिन्न जिलों में जिलाधीश या डिप्टी कमिश्नर रहे। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस राजनेश ओसवाल की बेंच ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए गृह मंत्रालय को छह हफ्तों के भीतर अंतिम निर्णय लेने का निर्देश दिया है कि क्या इन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी जाएगी या नहीं। अदालत ने यह निर्देश उस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया, जो वकील शेख मोहम्मद शफी और अन्य द्वारा दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया है कि आरोपी अधिकारी आज भी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं और प्रभाव का उपयोग कर सकते हैं, इसलिए अदालत की निगरानी जारी रहनी चाहिए।
गृह मंत्रालय ने अपने पत्र में सीबीआई से पूछा है कि क्या किसी अधिकारी ने घूस की रकम अपने या परिवार के बैंक खातों में जमा की थी? उदाहरण के तौर पर एक अधिकारी पर अपनी मां के खाते में 12-18 लाख रुपए स्थानांतरित करने का आरोप है, जबकि दूसरे अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने नोटबंदी के दौरान दो महिलाओं के खातों में 2.8 लाख रुपए जमा कर बाद में पैसा खुद को ट्रांसफर किया। मंत्रालय ने यह भी पूछा कि जांच सिर्फ 2012-2016 तक सीमित क्यों रखी गई, जबकि कुछ अधिकारी इससे पहले भी उन्हीं जिलों में पदस्थ थे.
सीबीआई ने अपनी जांच पूरी कर अपनी स्टेटस रिपोर्ट में कहा कि अधिकांश लाइसेंस फर्जी दस्तावेजों पर जारी किए गए। जांच एजेंसी का कहना है कि इन लाइसेंसों को जारी करने में कई बिचौलिए, डीलर और प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे। 2021 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) अधिकारियों और न्यायिक क्लर्कों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दे दी थी, जिसके बाद चार्जशीट दाखिल की गई। लेकिन आईएएस अधिकारियों पर फैसला लंबित रहा। गृह मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि यह फैसला इसलिए अटका है क्योंकि केंद्र सरकार वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति देने में अत्यंत सावधानी बरतती है। लेकिन अब अदालत के सख्त निर्देशों के बाद गृह मंत्रालय पर इस पर आखिरी फैसला लेगा।
इस घोटाले ने न केवल जम्मू-कश्मीर की प्रशासनिक ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह एक गंभीर मुद्दा बन गया है। अवैध हथियार लाइसेंस देश के विभिन्न हिस्सों में गलत हाथों में जा सकते थे, जिससे आतंकवाद या अपराध को बढ़ावा मिल सकता था। याचिकाकर्ता के वकील शेख शकील अहमद ने कहा, यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। हजारों हथियारों के लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी करना कोई साधारण प्रशासनिक गलती नहीं हो सकती।
हाईकोर्ट ने 8 अगस्त 2025 को गृह मंत्रालय को छह हफ्तों में स्पष्ट स्थिति रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। इसके बाद गृह मंत्रालय ने 1 सितंबर को सीबीआई से नई जानकारी मांगी। अब अगली सुनवाई में मंत्रालय को यह बताना होगा कि क्या वह इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति देगा। इस बीच, सीबीआई और गृह मंत्रालय के बीच संवेदनशील सबूतों को लेकर लगातार बातचीत चल रही है. मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, यह मामला न केवल आईएएस अधिकारियों के करियर का सवाल है, बल्कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की असली परीक्षा भी है।
जम्मू-कश्मीर का गन लाइसेंस घोटाला बताता है कि कैसे प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार और ढिलाई मिलकर एक ऐसी प्रणाली बना सकती है, जो अंततः देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाती है। अदालत ने अब सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है और आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि केंद्र सरकार सचमुच जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है या फिर यह घोटाला भी राजनीतिक और नौकरशाही संरक्षण की भेंट चढ़ जाएगा।
गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन के तीन अधिकारियों, यशा मुद्गल, शाहिद इकबाल चौधरी और नीरज कुमार के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है। यह कार्रवाई राजस्व सचिव कुमार राजीव रंजन पर राज्य में हथियार लाइसेंस में कथित अनियमितताओं के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति देने के दो महीने बाद मांगी गई है। गन लाइसेंस स्कैम में आठ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी घेरे में हैं। अब गृह मंत्रालय ने सीबीआई से पूछा है कि यशा मुर्दल, शाहिद इकबाल और नीरज कुमार समेत तमाम अधिकारियों के खिलाफ हथियार डीलरों से जुड़ने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं या नहीं। गृह मंत्रालय में अवर सचिव सीपी विनोद कुमार ने एक पत्र जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव को लिखा था। इसमें बताया गया कि तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने की सिफारिश करने वाले पत्रों के साथ न तो केंद्रीय जांच ब्यूरो के पत्र/प्रस्ताव और डीवीडी थे और न ही जम्मू-कश्मीर के कानून विभाग की कोई कानूनी राय।
इस घोटाले में 16 पूर्व जिलाधिकारी (13 आईएएस अधिकारी और तीन केएएस अधिकारी) शामिल हैं। इनमें ये तीनों अधिकारी भी शामिल हैं, जिनको लेकर सवाल पूछे गए हैं। सभी पूर्व जिलाधिकारियों पर तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के अलग-अलग जिलों में तैनाती के दौरान लाखों अवैध हथियारों के लाइसेंस जारी करने के आरोप हैं। सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ज्यादातर हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए। लाइसेंस जारी करने में कई डीलर, बिचौलिए और प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता थी।
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