संस्कृति बचाओ आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

शेख हसीना के बाद अब यूनुस सरकार के खिलाफ सड़कों पर छात्र

संस्कृति बचाओ आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

ढाका, 11 नवंबर (एजेंसियां)। बांग्लादेश में राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के बाद अब देश एक नए सांस्कृतिक संघर्ष से गुजर रहा है। प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस की सरकार के निर्णयों के खिलाफ देशभर के छात्र और शिक्षाविद सड़कों पर उतर आए हैं। आंदोलन की अगुवाई राजधानी ढाका, राजशाही, चिटगांव, जेस्सोर, रांगामाटी और सिलहट जैसे प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्र कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों की मुख्य शिकायत यह है कि नई सरकार द्वारा विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में संगीत, चित्रकला और नृत्य जैसे सांस्कृतिक विषयों को वैकल्पिक बनाकर शिक्षा व्यवस्था से बाहर किया जा रहा है। छात्रों का कहना है कि यह केवल शैक्षिक सुधार नहीं, बल्कि बांग्लादेशी पहचान और स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा पर हमला है।

याद रहे कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान राष्ट्रगीत और लोकसंगीत ने आजादी की भावना को जन-जन तक पहुँचाया था। आंदोलनकारियों के हाथों में तख्तियां हैं जिन पर लिखा है— “संस्कृति के बिना शिक्षा अधूरी है”, “संगीत हमारी आत्मा है” और “कला को मिटाने की साज़िश बंद करो।”

सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इन विषयों को हटाने का कारण “प्रशासनिक कठिनाइयाँ और बजट की कमी” है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यह फैसला इस्लामी कट्टर समूहों के दबाव में लिया गया है। इन समूहों ने लंबे समय से बांग्लादेश की शिक्षा प्रणाली से ‘पाश्चात्य प्रभाव’ समाप्त करने की मांग की थी।

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ढाका विश्वविद्यालय परिसर में बुधवार को हजारों छात्रों ने ‘संस्कृति बचाओ’ रैली निकाली। कई प्रोफेसरों ने भी इसका समर्थन किया। थिएटर विभाग के प्रोफेसर अनिसुल हक ने कहा— “संस्कृति ही हमारी राष्ट्रीय पहचान का आधार है। अगर संगीत, कविता और कला को शिक्षा से बाहर किया गया, तो बांग्लादेश अपनी आत्मा खो देगा।”

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इस आंदोलन ने अब देश के छोटे शहरों तक रफ्तार पकड़ ली है। ढाका से चिटगांव तक छात्र संघटन ‘सांस्कृतिक मार्च’ निकाल रहे हैं। उनकी प्रमुख मांगें हैं —

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  1. स्कूलों और कॉलेजों में संगीत व चित्रकला विषयों की पुनः बहाली।

  2. कला शिक्षकों की नियुक्ति और उनके वेतनमान में सुधार।

  3. सरकार द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर लगाए गए प्रतिबंधों की समीक्षा।

दूसरी ओर, सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने आरोप लगाया है कि यह आंदोलन “राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित” है और विपक्षी दल इसे हवा दे रहा है। लेकिन स्वतंत्र विश्लेषकों का कहना है कि विरोध केवल राजनीति का परिणाम नहीं बल्कि बांग्लादेशी समाज की गहरी सांस्कृतिक असंतुलन का संकेत है।

हिफाजत-ए-इस्लाम और अन्य इस्लामी संगठनों ने सरकार का समर्थन किया है। उनका तर्क है कि “शिक्षा को धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।” हालांकि, यूनुस सरकार ने फिलहाल कोई ठोस बयान नहीं दिया है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने संकेत दिया है कि “विवादास्पद निर्णयों पर पुनर्विचार किया जा सकता है।”

छात्र नेता रफीकुल इस्लाम ने कहा — “हम राजनीति नहीं कर रहे। हम अपनी पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जब हमारी किताबों से गीत, नृत्य और चित्रकला मिटा दी जाएगी, तो आने वाली पीढ़ियां बांग्लादेश की आत्मा से अनजान रह जाएंगी।”

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस आंदोलन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। ढाका में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के प्रतिनिधि ने कहा कि “किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली में संस्कृति का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे हटाना सामाजिक असंतुलन को जन्म दे सकता है।”

बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य की तरह अब उसका सांस्कृतिक भविष्य भी चौराहे पर खड़ा है। एक ओर सत्ता है जो ‘नए सुधार’ के नाम पर नीतियाँ बदल रही है, दूसरी ओर युवा पीढ़ी है जो अपने इतिहास, कला और राष्ट्रीय आत्मा को बचाने के लिए सड़कों पर डटी हुई है।

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