कर्नाटक में Siddaramaiah बनाम Shivakumar की जंग खुलकर सामने!

मोदी की ‘विभाजन’ भविष्यवाणी सच होती दिख रही?

कर्नाटक में Siddaramaiah बनाम Shivakumar की जंग खुलकर सामने!

कांग्रेस के दो ध्रुव आमने-सामने, सत्ता संतुलन हिल गया—कर्नाटक में राजनीतिक भूचाल तेज, हाईकमान बेअसर

बेंगलुरु, 21 नवम्बर (एजेंसियां)।  कर्नाटक की सत्ता में वह टकराव अब पूरी तरह सतह पर आ गया है जिसे महीनों से दबा हुआ बताया जा रहा था। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच चल रही खींचतान अब खुली राजनीतिक जंग का रूप ले चुकी है। यह वही परिदृश्य है जिसकी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारा किया था, जब बिहार चुनाव परिणामों के बाद उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में “एक और विभाजन” तय है। कर्नाटक आज उसी भविष्यवाणी का सबसे बड़ा उदाहरण बनता दिख रहा है।

कर्नाटक कांग्रेस की राजनीति शुरू से ही दो समानांतर शक्ति केंद्रों पर टिकी रही है—एक ओर सिद्धारमैया, जिनका बड़ा जनाधार और प्रशासनिक अनुभव है, दूसरी ओर डी.के. शिवकुमार, जो संगठनात्मक पकड़, आर्थिक संसाधन और रणनीतिक प्रभाव में पार्टी के सबसे ताकतवर नेताओं में गिने जाते हैं। 2023 चुनाव के बाद सत्ता-साझेदारी की जो अस्थायी व्यवस्था बनाई गई थी, वह अब चरमराने लगी है।

शिवकुमार का यह बयान कि “सभी 140 विधायक मेरे हैं” किसी मासूम राजनीतिक टिप्पणी से ज्यादा एक संदेश है—यह संकेत है कि वह केवल उपमुख्यमंत्री नहीं बल्कि कर्नाटक कांग्रेस की असली रीढ़ हैं। यह दावा सिर्फ संगठनात्मक ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि सिद्धारमैया के नेतृत्व को चुनौती देने की पहली सीधी चेतावनी माना जा रहा है। उनके इस बयान ने पार्टी के भीतर हलचल और तेज कर दी है।

दूसरी ओर सिद्धारमैया भी पीछे हटने वालों में से नहीं हैं। उनका दो टूक बयान कि “कैबिनेट फेरबदल हाईकमान का अधिकार है” सीधे-सीधे यह बताता है कि वह अपने पद और पकड़ को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। उनसे यह भी कहा गया है कि अगला बजट वे ही पेश करेंगे—यानी सत्ता का केंद्र अभी भी उन्हीं के पास है। यह बयान शिवकुमार की महत्वाकांक्षाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से रोक लगाने की कोशिश जैसा है।

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शिवकुमार ने हाल में प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने के संकेत देकर राजनीतिक तापमान और बढ़ा दिया था। हालांकि उन्होंने तुरंत कहा कि वे वरिष्ठ नेतृत्व को कोई असुविधा नहीं देना चाहते—पर यह भी साफ है कि वह दबाव में झुकने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि मोलभाव की मजबूत स्थिति में दिखना चाहते हैं। उनकी यह रणनीति पार्टी के अंदर शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में खींचने की कोशिश है।

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कांग्रेस के अंदरूनी समीकरण को देखते हुए यह साफ है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच पुरानी प्रतिस्पर्धा अब एक निर्णायक टकराव की ओर बढ़ रही है। “गोपनीय समझौता”—कि 2.5 साल बाद सत्ता हस्तांतरण होगा—यही विवाद की जड़ माना जा रहा है। भले ही पार्टी ने इसे हमेशा मिथक करार दिया हो, लेकिन घटनाक्रम बता रहा है कि सत्ता परिवर्तन का मुद्दा अंदर ही अंदर राजनीतिक ज्वालामुखी बना हुआ है।

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कांग्रेस हाईकमान की स्थिति भी पहले जैसी निर्णायक नहीं रही। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्यों में समय पर विवाद न सुलझा पाने की विफलता कर्नाटक में भी दोहराई जा रही है। इस कारण नेताओं के मनमुटाव खुली लड़ाई में बदलते देर नहीं लगती।

अब असली सवाल यह है कि क्या यह स्थिति राहुल गांधी की नेतृत्वहीन कांग्रेस को एक और बड़े टूट की ओर धकेल देगी? मोदी का बयान—“कांग्रेस में एक और विभाजन”—सिर्फ चुनावी हमला नहीं था, बल्कि एक राजनीतिक भविष्यवाणी की तरह था, जिसका असर कर्नाटक की राजनीति में साफ देखा जा सकता है। अभी टूट की स्थिति नहीं बनी है, लेकिन सत्ता की इस लड़ाई ने कांग्रेस की जड़ों को हिलाना शुरू कर दिया है।

यदि सिद्धारमैया-शिवकुमार संघर्ष पर जल्द काबू नहीं पाया गया, तो परिणाम न सिर्फ कर्नाटक सरकार बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रीय भविष्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।