नेपाली युवकों के सिर पर गोलियां मारने वाले स्नाइपर कौन थे?

त्रिपोली से कोलंबो, ढाका से काठमांडू तक एक ही समानता

 नेपाली युवकों के सिर पर गोलियां मारने वाले स्नाइपर कौन थे?

बड़ी प्लानिंग से आंदोलनकारियों को हिंसा के लिए भड़काया

पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों से खुल रही है नियोजित साजिश की कहानी

शुभ-लाभ सरोकार

त्रिपोली से कोलंबो और ढाका से काठमांडू तक हुए सत्ता विद्रोह के दौरान हुए हिंसक प्रदर्शनों में स्नाइपर राइफलों के इस्तेमाल में समानता पाई गई है। गोलियों के प्रकार से एक ही तरह के हथियारों के इस्तेमाल का खुलासा हुआ है। वे ऐसे हथियार हैं, जो आम प्रदर्शनकारियों तक पहुंच नहीं सकते और न आम प्रदर्शनकारी उसका इस्तेमाल कर सकता है। फिर कहां से आए ऐसे स्नाइपर राइफल और उनका इस्तेमाल किन लोगों ने कियाइन सवालों की छानबीन में सनसनीखेज तथ्य सामने आ रहे हैं। प्रदर्शनकारियों को ये नाटो हथियार किसने दिए और उन्हें इसे चलाने और सटीक निशाना लगाने की ट्रेनिंग किसने दी? यह प्रश्न काठमांडू से लेकर भारत और तमाम देशों की खुफिया एजेंसियों को मथ रहे हैं।

सितंबर 2025 को नेपाल की राजधानी काठमांडू में अराजकता चरम पर पहुंच गई और विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला हिंसक और जानलेवा होता चला गया। कई युवा प्रदर्शनकारियों को प्रदर्शन करते हुए गोली मार दी गई। गोलियां इतनी घातक और मारक थीं कि उनके चेहरे तक विकृत हो गए। जिन्हें गोलियां लगीं वे आम युवा प्रदर्शनकारी थे, जिनमें से कई की कमीजों के बटन आधे खुले थेलंबी बाजू की टी-शर्ट और जींस पहने हुए। लेकिन पल भर में घातक गोलियां उनकी आंखोंमाथे और गालों को चीरती हुई बाहर निकल गईं। प्रदर्शनकारी गिर पड़ेलड़खड़ाए और भागने की कोशिश करने लगेजबकि उनके साथी उन्हें एम्बुलेंस तक पहुंचा रहे थे। आग की तरह खबर फैली कि प्रदर्शनकारी पुलिस की गोली से मारे गए। लेकिन वह नेपाल पुलिस के पास उपलब्ध राइफलों से चली हुई गोलियां नहीं थीं। फिर गोलियों से मारे गए लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती ही गई, चार से छहफिर सोलहफिर बीस और उससे भी ज्यादा। हर मौत ने डरगुस्से और संदेह को उकसाया और पूरे नेपाल को नफरत की आग में झोंक दिया। इसी आग में काठमांडू के वरित्र हिंदू धर्मस्थल पशुपतिनाथ मंदिर को भी झुलसाने की नापाक कोशिश की गई।

सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों को परेशान करने वाला सवाल यही था कि जब नेपाल पुलिस के पास ऐसे हथियार ही नहीं हैं तो कोई दूसरी ज्यादा भयावह ताकत काम कर रही थी? खुफिया एजेंसियों को इन्हीं सवालों के कुछ तथ्यात्मक जवाब हासिल हुए हैं, जिनकी पूरी गंभीरता से समीक्षा की जा रही है। जब नेपाल में ऐसे हथियार चलाने वाले शार्पशूटर भी नहीं हैं तो वे कहां से आएत्रिपोली से लेकर ढाका और काठमांडू तक उपद्रवी हिंसा में गोलियों से हुई मौतों में समानता क्यों है? क्या अशांत क्षेत्रों में प्रोफेशनल स्नाइपर्स क्या किसी एक खास जगह से भेजे जा रहे हैंमौका मुआयना करने वाले हथियार एवं फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने कई खतरनाक स्थितियों का संकेत दिया है। मौका मुआयना में पाया गया कि उच्च प्रशिक्षित स्नाइपर ऊंचे स्थानों से प्रदर्शनकारियों को निशाना बना रहे थे। हर गोली सिर या चेहरे पर लगी। अग्रिम पंक्ति में चल रहे प्रदर्शनकारियों में से किसी को भी गोली नहीं लगी है। सामने से चलाई गई गोलियां आमतौर पर छाती या पैरों में लगती हैं। यानि, स्पष्ट है कि गोलियां ऊपर की बिल्डिंग या किसी ऊंचे स्थान से चलाई जा रही थीं।

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मौके से पाई गई गोलियां 7.62 बोर की विशेष बॉल गोलियों से मेल खाती हैं। यह एक ऐसा कैलिबर है जो अक्सर मानक पुलिस आग्नेयास्त्रों के बजाय स्नाइपर राइफलों में इस्तेमाल होता है। मारे गए युवकों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी इसका खुलासा हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि ये शार्पशूटर जानबूझकर विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों की हत्या करने और अधिक से अधिक अशांति भड़काने की कोशिश कर रहे थे। इससे अराजकता फैली और इसके लिए अधिकारियों और पुलिस को दोषी ठहराया गया। जबकि नेपाल पुलिस केवल गैर-घातक रबर की गोलियों से लैस थी। नेपाल में अराजकता फैलाने की साजिश करने वाली ताकतें यही तो चाहती थीं।

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खुफिया एजेंसियां काठमांडू और ढाका की घटनाओं में समानता पाती हैं। पिछले साल जुलाई में ढाका में भी हिंसा का ऐसा ही दौर देखा गया था। वहां हिंसक प्रदर्शन के दौरान मीर महफूज़ुर रहमान मुग्धो नाम के एक लड़के की गोली लगने से मौत हो गई थी। वह प्रदर्शनकारियों को पानी की बोतलें बांट रहा था। भीड़ के बीचएक गोली सीधे उसके माथे में लगी और वह वहीं ढेर हो गया। मुग्धो की पानी की बोतल जुलाई आंदोलन का एक भयावह प्रतीक बन गई। उस नाराजगी ने ढाका की हिंसा को ऐसा भड़काया कि उसपर कोई नियंत्रण नहीं रहा और फिर मौत का जो तांडव हुआ, वह इतिहास में दर्ज हो गया। ढाका की जुलाई क्रांति का एक और प्रतीकात्मक व्यक्तित्व रंगपुर का एक छात्र अबू सईद था। उसकी बाहें फैलाए तस्वीरें व्यापक रूप से प्रसारित हुईं और उसकी ऐसी ही मृत्यु संघर्ष का प्रतीक बन गई। प्रदर्शनकारियों ने कहा, अबू सईद को पुलिस ने गोलियां मारी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि पुलिस के हथियार से चली गोलियां तो प्लास्टिक की थींजिससे केवल सतही घाव हुए थे। उसकी मौत का प्लास्टिक की गोलियां नहीं, बल्कि अबू सईद के सिर के पिछले हिस्से में लगी एक गोली थीजो पुलिस राइफल की नहीं थी। वह गोली किसी स्नाइपर के राइफल से चली थी और किसी ऊंची इमारत या ऊंची जगह से चलाई गई थी। कौन थे ऊंचाई से गोलियां चलाने वाले?

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इन घटनाओं का राजनीतिक संदर्भ महत्वपूर्ण है। पिछले साल अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापटल के बाद और पेरिस से मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार के रूप में टपकाए जाने के बाद ब्रिगेडियर (रि.) सखावत हुसैन ने हताहतों की प्रारंभिक जांच की थी। प्रेस से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा थालगभग सभी मृतकों के सिर में 7.62 बोर की गोली लगी थी। हुसैन ने स्वीकार किया था कि ऐसी गोलियां पारंपरिक पुलिस हथियारों में नहीं होतीं। इसका मतलब साफ है कि ऊंची जगहों से सैन्य-श्रेणी की राइफलों का इस्तेमाल करने वाले उच्च प्रशिक्षित निशानेबाज शहर के भीतर सक्रिय थे।

यह खुलासा करने वाले ब्रिगेडियर हुसैन का जल्द ही तबादला कर दिया गया। इसके बाद भी जांच जारी रही। सेना ने ढाका में कई स्नाइपर राइफलें बरामद कींजिनमें से कई अत्याधुनिक और विदेश से आयातित थीं। ढाका की बहुमंजिली इमारतों की छतों पर तैनात स्नाइपर्स ने प्रदर्शनकारियों में से ऐसे लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया, जिससे हिंसा और भी तेज हो गए। ऐसा ही हुआ। ढाका के प्रायोजित आंदोलन में भीषण मानवीय क्षति हुई।

आप याद करिए लीबिया में कर्नल मुअम्मर गद्दाफी के खिलाफ अमेरिका प्रायोजित सत्ता परिवर्तन अभियान के दौरान भी ऐसी ही रणनीति अपनाई गई थी। युवा लीबियाई स्नाइपर्स को प्रशिक्षित किया गया था और त्रिपोली की छतों पर तैनात किया गया था। वहां से वे प्रदर्शनकारियों को निशाना बना रहे थे, जिससे जनाक्रोश भड़कता चला गया। इसका नतीजा कर्नल गद्दाफी की मॉब लिंचिंग के रूप में सामने आया। अमेरिकी यही तो चाहता था।

समानताएं बहुत गहरी हैं। नेपाल मेंप्रदर्शनकारियों के सिर में गोली लगने और पुलिस द्वारा प्लास्टिक की गोलियां चलाने के वीडियो ढाका की त्रासदियों की याद दिलाते हैं। युवा प्रदर्शनकारी गिरते हैंउनका जीवन अचानक समाप्त हो जाता है या हमेशा के लिए बदल जाता हैजबकि अधिकारियों के आधिकारिक बयान अक्सर प्रदर्शनकारियों पर ही अशांति का आरोप लगाते हैं। यह दोहरी त्रासदी जानों का नुकसान और न्याय का अभावजीवित बचे लोगोंपरिवारों और समुदायों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है।

काठमांडू में हुई सितंबर की घटना ने अंतरराष्ट्रीय प्रभावगुप्त अभियान और राजनीतिक संघर्षों में स्नाइपर्स के इस्तेमाल से जुड़े व्यापक सवाल सामने उछाल दिए हैं। ऊंचाई से प्रदर्शनकारियों को निशाना बना कर लोगों को भड़काने और उसे मनोवैज्ञानिक युद्ध के रूप में तब्दील करने तरीका भयानक रूप अख्तियार करता जा रहा है। स्तब्ध करने वाली सच्चाई यह है कि ये घटनाएं वैश्विक विरोध प्रबंधन के एक पैटर्न का हिस्सा हैंजो बाहरी और भीतरी षडयंत्रकारी तत्वों और सैन्य रणनीतियों से प्रभावित हैं। चाहे काठमांडू होढाका हो या त्रिपोलीकहानी एक ही है।

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