एक सीट कैसे जीत गई भाजपा?

 सात विधायकों की पहेली में उलझा राज्यसभा चुनाव

एक सीट कैसे जीत गई भाजपा?

उमर पूछ रहे सवाल, किसने की गद्दारी?

सुरेश एस डुग्गर

जम्मू, 25 अक्टूबर। जम्मू कश्मीर में चौथी राज्यसभा सीट के लिए हुआ बेहद अहम मुकाबला संख्या गणित से अधिक सियासी चाल से जुड़ा साबित हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के पास जरूरी संख्याबल नहीं था। फिर भी भाजपा उम्मीदवार सतपाल शर्मा ने जीत दर्ज की। यह जीत विपक्षी गठबंधन के सात अहम वोटों के रहस्यमय ढंग से गायब होने के कारण मिली।

इस नतीजे ने सात पार्टी-संबद्ध और निर्दलीय विधानसभा सदस्यों (विधायकों) पर गहरी नजर डाली हैजिनके वोट तय रास्ते से अलग रास्ते पर चले गए। नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने बड़ी मेहनत से 58 विधायकों (41 नेकांछह कांग्रेससात निर्दलीयतीन पीडीपी और एक सीपीआई (एम)) का एक मजबूत समूह इकट्ठा किया था। यह संख्या तीसरी और चौथी दोनों सीटें आराम से हासिल करने के लिए पर्याप्त थी।

अंतिम गणना ने समन्वित जवाबी हमले की तस्वीर पेश की। भाजपा उम्मीदवार सतपाल शर्मा को 32 वोट मिलेजो भाजपा की कुल संख्या से चार वोट अधिक थे। ये चार अतिरिक्त वोट भाजपा के पक्ष में क्रॉस-वोटिंग के स्पष्ट प्रमाण हैं। जबकि नेकां के इमरान नबी डारजिन्हें 28 या 29 वोटों की निश्चित संख्या की आवश्यकता थीउन्हें मात्र 21 वोट मिलेसात या आठ की कमी। इसी तरह से दूसरे विजयी नेकां उम्मीदवार शम्मी ओबेरॉय को 31 वोट मिलेजो आवश्यक संख्या से एक अधिक है। विश्लेषकों का कहना है कि यह वोट डार को मिलना चाहिए था। कुल मिलाकरनेकां के दोनों उम्मीदवारों को अनुमानित 58 के बजाय 51 वोट मिले। सात वोटों का अंतर। वे वोट जो या तो भाजपा को मिले या जानबूझकर रद्द किए गए या गलत दिशा में दिए गए। यही इस चुनाव का मुख्य रहस्य है। नतीजों के तुरंत बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उन लोगों की ईमानदारी पर सवाल उठाया जिन्होंने समर्थन का वादा किया था लेकिन उलटफेर कर दिया। नेशनल कांफ्रेंस के विधायक कहते हैं कि उन्होंने क्रॉस-वोटिंग नहीं की। फिर सवाल उठता हैभाजपा को चार अतिरिक्त वोट कहां से मिलेवे विधायक कौन थे जिन्होंने मतदान करते समय गलत वरीयता संख्या अंकित करके जानबूझकर अपने वोट अमान्य कर दिएक्या उनमें इतनी हिम्मत है कि वे हमें वोट देने का वादा करने के बाद भाजपा की मदद करने की बात स्वीकार करेंकिस दबाव या प्रलोभन ने उन्हें यह चुनाव करने में मदद की?

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इन कड़े शब्दों से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विवाद शुरू होने की उम्मीद हैजिससे गठबंधन संबंधों में खटास आ सकती है और यह जम्मू कश्मीर की राजनीति में एक निर्णायक मुद्दा बन सकता है। इस विवाद ने राज्यसभा चुनावों से संबंधित नियमों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया हैजहां विधायकों को अपना चिन्हित वोट डालने से पहले अधिकृत पोलिंग एजेंटों को दिखाना होता है। यह अनिवार्यता पार्टी सदस्यों द्वारा क्रास-वोटिंग को रोकने के लिए है। हालांकिएक कांग्रेस विधायक के संबंध में एक प्रक्रियात्मक अनियमितता देखी गई। कांग्रेस विधायक निजामुद्दीन भटजो पार्टी के पोलिंग एजेंट थेने बिना किसी वैकल्पिक पोलिंग एजेंट की मौजूदगी के अपना वोट डाल दिया।

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भट के जवाब ने एक विचित्र नाटकीयता बढ़ा दी है। वे कहते हैं, मैं मुख्य पोलिंग एजेंट था और मुझे अपना वोट खुद को दिखाना पड़ा। इसके अलावानेकां के एक नेता ने दावा किया कि पीडीपी विधायकों को इमरान नबी डार को वोट देने का निर्देश दिया गया थालेकिन अंतिम मतगणना से पता चलता है कि उन्होंने इसका पालन नहीं किया। निर्दलीय विधायकों के विपरीतजिन्हें अपना वोट दिखाने की आवश्यकता नहीं होती हैराजनीतिक दलों के विधायकों को अपना मतपत्र दिखाना होता हैजिससे इन विशिष्ट पार्टी सदस्यों द्वारा क्रॉस-वोटिंग या जानबूझकर रद्द करना सीधे तौर पर अवज्ञा का कार्य बन जाता है। क्रॉस-वोटिंग ने सत्तारूढ़ गठबंधन के वोटिंग ब्लाकों की कमजोर संरचना को उजागर कर दिया है और अब आने वाले दिनों में एक कटु राजनीतिक हिसाब-किताब का मंच तैयार कर दिया है। रास्ता भटकने वाले सात लोगों की पहचान चुनाव परिणाम के बाद का सबसे बड़ा टास्क बन गया है।

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