धार्मिक स्वतंत्रता कानून लागू करने की मांग

अरुणाचल प्रदेश में तेजी से बढ़ रहा धर्मांतरण

धार्मिक स्वतंत्रता कानून लागू करने की मांग

ईटानगर, 25 अक्टूबर (एजेंसियां)। इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (आईएफसीएसएपीने मुख्यमंत्री पेमा खांडू से अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम-1978 (अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट-1978) को तत्काल प्रभाव से लागू करने की मांग की है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. एमी रूमी ने कहा कि दिसंबर 2024 में आईएफसीएसएपी के रजत जयंती समारोह में मुख्यमंत्री द्वारा अधिनियम को लागू करने की घोषणा की गई थीपरंतु 10 माह बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

उन्होंने कहा कि इस देरी के कारण सनातन समाज में गहरा असंतोष व्याप्त है। सरकार की निष्क्रियता को देखते हुए एक जनहित याचिका (पीआईएलभी दाखिल की गई थीजिस पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय की ईटानगर पीठ ने मार्च 2025 में राज्य सरकार को अधिनियम के नियम बनाकर तत्काल लागू करने के निर्देश दिए थे।

आईएफसीएसएपी ने बीते 18 अक्टूबर को हजारों श्रद्धालुओं और नागरिकों के साथ धर्म यात्रा निकालीजो ईटानगर के न्योकुम लापांग मैदान में एक विशाल जनसभा के रूप में समाप्त हुई। सभा में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि यदि राज्य सरकार 18 नवंबर 2025 तक अधिनियम को लागू नहीं करती हैतो संगठन राज्य और दिल्ली में चरणबद्ध आंदोलन आरंभ करेगा। डॉ. रूमी ने कहा, धर्म और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं। जब धर्म बदलता हैतो संस्कृति और मातृभूमि के प्रति निष्ठा भी बदल जाती है। विदेशी धर्मों के प्रसार से अरुणाचल की सामाजिक संरचना और राष्ट्रीय एकता दोनों पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

उन्होंने बताया कि 1978 में जहां धर्मांतरण की दर केवल 01 प्रतिशत थीवहीं अब यह 35 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। सीमावर्ती क्षेत्रों में यह दर 90 प्रतिशत तक पहुंच गई हैजहां विद्रोह और हिंसक गतिविधियां सामान्य हो गई हैं। अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं चीन से सटी होने के कारण यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से अति संवेदनशील है। तवांग जैसे ऐतिहासिक मठों और स्वदेशी धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सांस्कृतिक संतुलन पर निर्भर करती है। आईएफसीएसएपी ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वे अपने वचन के अनुरूप एपीएफआरए-1978 को स्पष्ट नियमों सहित राजपत्र में अधिसूचित करेंताकि किसी भी प्रकार की भ्रम या गलत व्याख्या की गुंजाइश न रहे। संस्था ने इस पत्र के साथ राजस्थान के धर्मांतरण-विरोधी कानून की प्रति भी संदर्भ हेतु संलग्न की है और राज्य सरकार से शीघ्र निर्णायक कदम उठाने का आग्रह किया है।

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