बेंगलुरु, 23 नवंबर (एजेंसियां)। कर्नाटक की सत्ता के गलियारों में लंबे समय से चल रही आंतरिक खींचतान एक बार फिर सुर्खियों में है। राज्य के गृहमंत्री डॉ. जी. परमेश्वर ने रविवार को खुले मंच से एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश ज़ाहिर कर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। उनके इस बयान ने न सिर्फ कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर चल रही बहस को हवा दी है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि शीर्ष सत्ता के समीकरण अभी स्थिर नहीं हैं।
डॉ. परमेश्वर ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा, “मैं हमेशा से मुख्यमंत्री की रेस में रहा हूं। यह पद मेरे लिए नया नहीं है और न ही मेरी ख्वाहिश किसी से छिपी है।” उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके डिप्टी डी.के. शिवकुमार के बीच पावर-शेयरिंग को लेकर लगातार चर्चाएं और अटकलें जारी हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि परमेश्वर का यह बयान सीधे तौर पर उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार की ओर इशारा करता है, जिन्हें आने वाले महीनों में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। दरअसल, 2023 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी जीत के बाद यह तय हुआ था कि सिद्धारमैया पहले दो साल मुख्यमंत्री रहेंगे और उसके बाद शिवकुमार को मौका मिलेगा। लेकिन अब दो साल के भीतर ही राज्य में सत्ता संतुलन एक बार फिर बदलता दिख रहा है।
अपने राजनीतिक सफर और योगदान की चर्चा करते हुए परमेश्वर ने कहा, “2013 में जब कांग्रेस सत्ता में लौटी थी, मैं प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष था। मैंने उस जीत के लिए जमकर मेहनत की, लेकिन कभी इसका श्रेय नहीं लिया।” उन्होंने कहा कि कई मौकों पर नेतृत्व की दौड़ में होने के बावजूद ‘उन्हें जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया’।
उन्होंने साफ कहा कि उनकी इच्छा ‘स्वाभाविक राजनीतिक आकांक्षा’ है और कांग्रेस में किसी भी नेता को अपनी महत्वाकांक्षाएं व्यक्त करने का हक है।
उन्होंने कहा, “पार्टी में हर किसी की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं होती हैं। लेकिन अंत में फैसला आलाकमान ही करता है और हम सब उस फैसले के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं।”
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनके बयान को अनावश्यक विवाद में नहीं घसीटना चाहिए। “कुछ लोग मेरी बातों का अलग मतलब निकालेंगे, लेकिन मैं सिर्फ अपनी राजनीतिक यात्रा और योगदान के बारे में ईमानदारी से बोल रहा हूं।”
सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार में असंतोष की चर्चाओं पर विराम लगाते हुए उन्होंने कहा, “सरकार में कोई असहजता या भ्रम नहीं है। हम सभी मिलकर काम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी भूमिका निभा रहे हैं और उप मुख्यमंत्री शिवकुमार भी अपनी जिम्मेदारियों पर कायम हैं।”
हालांकि, राजनीतिक पंडित मानते हैं कि सरकार की अंदरूनी राजनीति उसी तरह उबल रही है जैसे 2013 और 2018 में हुआ था, जब सीएम पद को लेकर भारी टकराव सामने आया था।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ऑफ द रिकॉर्ड स्वीकार किया कि “कर्नाटक में सत्ता की कुर्सी को लेकर असली मुकाबला अभी खत्म नहीं हुआ है। वक्त-बेवक्त ऐसे बयान माहौल को गर्माते रहेंगे।”
उन्होंने कहा कि पार्टी फिलहाल सीधे दखल से बच रही है, लेकिन दिल्ली हाईकमान हालात पर नजर रखे है।
परमेश्वर के इस बयान ने एक बार फिर ‘कर्नाटक कांग्रेस की गेम ऑफ थ्रोन्स’ को जीवित कर दिया है, जहाँ सिद्धारमैया, शिवकुमार और अब परमेश्वर—तीनों ही सत्ता संतुलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
राजनीतिक रूप से देखें तो परमेश्वर का यह बयान कांग्रेस हाईकमान को यह संदेश है कि उन्हें भी नेतृत्व की दौड़ में गंभीर दावेदार माना जाए और आने वाली किसी भी परिस्थिति में उन्हें नज़रअंदाज़ न किया जाए।
कई राजनीतिक टिप्पणीकारों ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताकर परमेश्वर न सिर्फ अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि आने वाले महीनों में होने वाले कैबिनेट फेरबदल, संगठनात्मक बदलाव और पावर-शेयरिंग की चर्चाओं में खुद को केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
राज्य में कांग्रेस की सरकार फिलहाल स्थिर दिखती है, लेकिन जिस तरह शीर्ष नेताओं की महत्वाकांक्षाएं बार-बार सार्वजनिक हो रही हैं, उससे यह संकेत मिलता है कि सत्ता संतुलन किसी भी समय बड़ी हलचल पैदा कर सकता है।
कुल मिलाकर, परमेश्वर का खुला दावा कर्नाटक की राजनीति में नया तूफान ला चुका है और यह तय है कि भाजपा और जेडीएस इस अवसर का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे।

