कोलकाता, 25 नवम्बर,(एजेंसियां)। पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के शुरू होते ही सीमावर्ती जिलों—नदिया, मुर्शिदाबाद और उत्तर 24 परगना—में बड़े पैमाने पर अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के अपने देश लौटने की खबरें सामने आ रही हैं। कई क्षेत्रों में घरों पर ताले लटकने लगे हैं और पूरे-पूरे मोहल्ले खाली दिखाई दे रहे हैं। प्रशासनिक स्तर पर यह स्थिति दिखाती है कि वर्षों से ढीली पड़ी व्यवस्थाओं में पहली बार किसी सख्त कार्रवाई की हल्की सी आहट भर ने अवैध प्रवासियों के भीतर असाधारण भय उत्पन्न कर दिया है।
इसी परिप्रेक्ष्य में राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने मुर्शिदाबाद का दौरा किया और हालात का जमीनी आकलन किया। इससे पहले उन्होंने उत्तर 24 परगना के हकीमपुर सीमा चौकी पर बीएसएफ अधिकारियों से बैठक की और स्थानीय निवासियों से जानकारी ली। राज्यपाल ने SIR को “महत्वपूर्ण और आवश्यक प्रक्रिया” बताते हुए कहा कि वे “जमीनी सच्चाई अपनी आंखों से देखना चाहते हैं”, क्योंकि इससे जुड़े मुद्दों पर कई भ्रामक जानकारियां फैल रही हैं।
राज्य में अचानक तेज़ हुए ‘रिवर्स माइग्रेशन’ के पीछे की मुख्य वजह यह है कि कई अवैध घुसपैठियों ने मतदाता सूचियों में अपना नाम दर्ज कराने के लिए वर्षों पहले फर्जी पहचान और बदले हुए नामों का इस्तेमाल किया था। कुछ रिपोर्टें बताती हैं कि लगभग 2.68 लाख लोगों ने अपने मुस्लिम नाम हटाकर हिंदू उपनाम जोड़कर खुद को स्थानीय नागरिक साबित करने की कोशिश की। यह आंकड़ा बताता है कि घुसपैठ केवल सुरक्षा का मसला नहीं, बल्कि राजनीतिक संरचना को प्रभावित करने वाली संगठित जनसांख्यिकीय चुनौती बन चुकी है।
सीमावर्ती इलाकों में जिन घरों पर ताले लगे मिले, उन इलाकों के लोगों का कहना है कि अवैध प्रवासी रातों-रात सीमा पार भाग रहे हैं। कई वर्षों तक इस मुद्दे को न केवल अनदेखा किया गया, बल्कि राजनीतिक संरक्षण भी मिलता रहा। वोट बैंक के रूप में घुसपैठियों का उपयोग किया गया और प्रशासन ने ज्यादातर मामलों में कार्रवाई से परहेज़ किया। इसका परिणाम यह हुआ कि कई क्षेत्रों में स्थानीय आबादी खुद अल्पसंख्यक में बदलती चली गई।
राज्यपाल के दौरे को कई विशेषज्ञ केवल औपचारिक कदम नहीं, बल्कि व्यवस्था में उत्पन्न गहरे अविश्वास को समझने का महत्वपूर्ण प्रयास मानते हैं। जब एक संवैधानिक पदाधिकारी को यह कहना पड़े कि “गलत सूचना से लोगों में डर फैलाया जा रहा है”, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि समस्या सिर्फ फर्जी सूचनाओं की नहीं, बल्कि उस असुरक्षा की है जो अवैध प्रवासियों के बीच वर्षों से फैली रही है—और अब SIR की साधारण प्रक्रिया ही उनके लिए खतरा बन गई है।
यह सवाल अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि हजारों लोग एक नियमित चुनावी प्रक्रिया से क्यों डर रहे हैं? क्या यह इसलिए कि उनके पास वैध दस्तावेज नहीं? या इसलिए कि वर्षों से उन्हें भारत में बिना पहचान और नियमों के रहने दिया गया?
विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल SIR से समस्या हल नहीं होगी। बंगाल में घुसपैठ का संकट व्यापक, संरचनात्मक और लंबे समय से है। यह मुद्दा न सिर्फ बंगाल बल्कि असम, त्रिपुरा, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में भी मौजूद है। इसलिए देश को एक स्पष्ट, मजबूत और निष्पक्ष राष्ट्रीय पहचान सत्यापन नीति की आवश्यकता है।
वर्तमान स्थिति यह संकेत देती है कि अब केवल राजनीतिक साहस ही इस चुनौती का समाधान दे सकता है—साहस जो वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दे।

