गाय घर की सदस्य है, जानवर नहीं, वह मां है
आवारा कुत्तों के प्रेमियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीखा कटाक्ष
कुत्तों को चूमने और गाय को खाने वाला तबका समाज को सड़ा रहा
शुभ-लाभ सरोकार
देश में जो लोग गाय को अपने आहार के रूप में देखते हैं और कुत्तों पर दुलार न्यौछावर करते हैं, ऐसे लोगों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीखा कटाक्ष भी किया और सीधा संदेश भी दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, गाय जानवर नहीं, माता है। पीएम का यह संदेश उन पाखंडियों के लिए था जो आवारा कुत्तों के लिए खुद को पशु-प्रेमी का नाम देने में शान समझते हैं और गाय का मांस देख कर लार टपकाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह संदेश सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इस वीडियो में प्रधानमंत्री गाय को माता कहकर उसका सम्मान करते हैं और उसे सिर्फ जानवर मानने से मना करते हैं। दूसरी तरफ समाज में ऐसे पाखंडी और राक्षस भी मौजूद हैं, जो गाय को सिर्फ अपने स्वाद का हिस्सा मानते हैं, लेकिन आवारा कुत्तों के प्रेमी बने घूमते हैं। प्रधानमंत्री के वीडियो के साथ-साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भी एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे एक कुत्ते को चूम-चूम कर और अपने गले लगा-लगा कर निहाल हो रहे हैं।
दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे दोहरे चरित्र वाले लोगों पर तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए ऐसी बात कह दी कि पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा। चर्चा आवारा कुत्तों और डॉग लवर्स से शुरू हुई, लेकिन गाय के प्रति बरती जाने वाली निर्ममता पर आ गई। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, मैं हाल ही में कुछ एनिमल लवर्स से मिला। इतना सुनते ही हॉल में बैठे लोग हंसने लगे। इस पर पीएम मोदी ने मुस्कुराते हुए कहा, आप लोग तो हंसने लगे? हमारे देश में ऐसे बहुत लोग हैं, जिनकी खासियत है कि वे गाय को जानवर मानते हैं। लेकिन कुत्तों को घर का सदस्य। जबकि बात इसके ठीक विपरीत है। गाय जानवर नहीं है। वह हमारे घर की सदस्य है। वह हमारी माता है।
बात सिर्फ जानवरों से प्यार की नहीं है, बात उस दोहरे मापदंड की है जहां एक तरफ कुछ लोग कुत्तों को लेकर कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाते हैं, लेकिन दूसरी तरफ वही लोग बीफ-फेस्टिवल मनाते दिखते हैं। कुछ समय पहले स्टैंड-अप कॉमेडियन वीर दास ने आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए लिखा, कानूनी विशेषज्ञ एक बात बताएं। अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरी होता है, तो क्या नागरिक इस फैसले के खिलाफ अपील नहीं कर सकते? वीर दास जैसे पाखंडी एक तरफ लिखते हैं, 15 अप्रैल को चिकन टिक्का उत्सव मना रहा हूं, सब आमंत्रित हैं। दूसरी तरफ वे और वैसे लोग कुत्तों की आंखों में आंसू देख लेते हैं, लेकिन गाय देख कर उन्हें सिर्फ स्वाद दिखता है। ये वही लोग हैं जो डॉग स्क्वाड की टी-शर्ट पहनते हैं, लेकिन मेनू कार्ड पर बीफ करी टिक करते वक्त हिचकिचाते नहीं हैं। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने वीर दास के पोस्ट का जवाब देते हुए लिखा, कुत्तों को शुद्ध बता रहे हो, लेकिन गाय को नहीं? बीफ की गंध और उसे देखते ही तुम्हारा सारा पशु प्रेम कहां चला जाता है, पाखंडियों।
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर गायों के साथ देखे जाते हैं, उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होती रही हैं, जहां वे गायों को खाना खिलाते और दुलारते दिखते हैं। हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और गौ माता के रूप में पूजा जाता है। मोदी सरकार ने 2014 से गायों की सुरक्षा के लिए कई योजनाएं भी शुरू की हैं। 2019 में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना की गई थी। यह आयोग मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत काम करता है। इसका मुख्य उद्देश्य गायों और उनकी नस्लों का संरक्षण, सुरक्षा और विकास करना है।
कुछ समय पहले ही, दिल्ली में आवारा कुत्तों को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को एक आदेश जारी किया, जिसमें दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से शेल्टरों में रखने का निर्देश दिया गया। कोर्ट ने यह आदेश कुत्तों के काटने और रेबीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए दिया था, जिसमें बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे। इस आदेश का पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और कई मशहूर हस्तियों ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने इस आदेश को अवैज्ञानिक बताया और कहा कि यह पशु जन्म नियंत्रण नियमों के खिलाफ है। इस विरोध को देखते हुए, चीफ जस्टिस ने मामले को तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया।
नई पीठ ने पुराने आदेश में बदलाव कर दिया और निर्देश दिया कि कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उसी जगह वापस छोड़ा जाए, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक सड़कों पर कुत्तों को खाना खिलाने की अनुमति नहीं होगी, बल्कि इसके लिए नगर निगमों को विशेष फीडिंग जोन बनाने होंगे। आपने कभी सुना कि सुप्रीम कोर्ट या कोई भी अदालत किसी आम आदमी के मामले में ऐसा करती हो! लेकिन कुत्ते के लिए सुप्रीम कोर्ट पूरी की पूरी पीठ बदल देते है और अपने ही फैसले को बदल कर कुत्तों को पसंद आने वाला फैसला सुना देती है। यह समाज के कुत्तत्व की ओर तेजी से अग्रसरित होने की सनद है। आए दिन आप सुनते और देखते हैं कि किस तरह आवारा कुत्तों के झुंड बच्चों से लेकर बुजुर्गों और महिलाओं को नोंच-नोंच कर मार डालते हैं, लेकिन समाज के कुत्ता प्रेमियों को उन लोगों की त्रासद मौत की पीड़ा नहीं होती। यह कुत्ता प्रेम ठीक उसी तरह का रोग है, जैसे कभी भारतीय समाज में लोगों को धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता और बुद्धिजीविता का रोग लगा हुआ था। एक समय अंतराल में इसका ढोंग पूरे समाज को पता चल गया तो लोग इससे परहेज करने लगे। अब वह रोग गया तो कुत्तत्व का रोग लग गया। वह भी एक अंतराल के बाद समाप्त होगा या पूरे समाज को कुत्तत्व में बदल देगा।
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