जब भगवान से ही प्रार्थना करें तो आप क्यों हैं जज साहब?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेजा टिप्पणी पर चुप्पी क्यों?
प्राचीन मूर्ति की मरम्मत की मांग खारिज करने के लिए ओछा वक्तव्य जरूरी नहीं
शुभ-लाभ चिंता
खजुराहो के संरक्षित स्मारक में भगवान विष्णु की टूटी मूर्ति को बदलने या मरम्मत कराने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बदतमीजी से खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा, आप भगवान से कहिए वही ठीक करा देंगे। इस तरह के ओछे वक्तव्य के साथ याचिका खारिज करने की शीर्ष न्यायपालिका की कार्रवाई ने देश की न्यायप्रियता और न्यायाधीशों के खोखले व्यक्तित्व को पूरे देश के सामने उजागर किया है। विडंबना यह है कि इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 16 सितंबर को खजुराहो जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट लंबी कटी हुई मूर्ति को बहाल करने की एक याचिका खारिज कर दी। यह मूर्ति यूनेस्को द्वारा संरक्षित खजुराहो के स्मारकों का हिस्सा है, जो सदियों पहले मुगल आक्रमणों के दौरान सिर कटवाकर अपवित्र और अपमानित छोड़ दी गई थी। याचिकाकर्ता राकेश दालाल ने तर्क दिया था कि मूर्ति को ठीक करना सिर्फ पुरातत्व की बात नहीं, बल्कि आस्था, सम्मान और हिंदुओं का बुनियादी अधिकार है कि वो अपने पूर्ण देवताओं की पूजा कर सकें। सीनियर एडवोकेट संजय एम नुली के माध्यम से पेश हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (एएसआई) और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दे दें कि वे मूर्ति की मरम्मत कर उसे मंदिर में फिर से स्थापित कर दें। याचिका में खजुराहो मंदिरों की विरासत का जिक्र भी किया गया, जो चंद्रवंशी राजाओं के समय बने थे। ब्रिटिश काल की उदासीनता के बाद आजादी के 70 साल से ज्यादा बीतने के बावजूद लापरवाही ने मूर्ति को उपेक्षित छोड़ दिया है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच जो कुछ कहा, वह हैरान करने वाला और शर्मिंदगी से भर देने वाला है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा, ये पूरी तरह से पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है। आप जाकर खुद देवता से कहो कि अब कुछ करें। तुम कहते हो कि भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो। तो जा कर अब प्रार्थना करो। कोई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से पूछे कि अगर प्रार्थना ही जवाब है, तो अदालतों और न्यायाधीशों की भारी-भरकम जमात की जरूरत ही क्या है?
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के मुंह से हिंदुओं के लिए की गई यह टिप्पणी मुगल तलवारों से लगाए गए सदियों पुराने घाव से कहीं ज्यादा गहरी चुभ गई। ये एक पुराने ताने की अनुगूंज थी, अगर तुम्हारे देवता असली हैं, तो खुद को क्यों नहीं बचाया? इस कटाक्ष का इस्तेमाल सदियों से इस्लामी शासकों और आधुनिक धर्मनिरपेक्ष एलीट्स करते हैं और उसका इस्तेमाल कर खुद मुख्य न्यायाधीश उस जमात में जाकर खड़े हो गए हैं।
अगर यही टिप्पणी मुसलमानों पर की जाती तो क्या होता? वक्फ (संशोधन) एक्ट की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने याचिकाकर्ताओं से कहा होता, अगर ये कानून पसंद नहीं, तो जा के अल्लाह से मदद मांगो। दुआ करो, शायद वो तुम्हारी जमीनें बहाल कर दें। तो क्या होता? इसके बाद तो पूरे देश में बवाल हो जाता। कानूनी भाईचारे वाले बयान जारी करते, टीवी एंकर चिल्लाते न्यायिक इस्लामोफोबिया, एनजीओ वाले संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठियां भेजते और चीफ जस्टिस को कट्टरपंथी करार दे दिया जाता।
लेकिन जब हिंदुओं के साथ ऐसा बेजा बर्ताव होता है, तो प्रतिक्रिया की जगह सिर्फ चुप्पी होती है। कोई वकील काउंसिल बयान नहीं देता। सड़कों पर कोई प्रदर्शन नहीं होता। कोर्ट में कोई याचिका नहीं दाखिल होती। दरअसल, भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ़ एक तरफा चलती है। यहां हिंदुओं का मजाक उड़ाया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और बेधड़क कटाक्ष किए जाते हैं। वहीं, मुसलमानों के किसी गलतफहमी की वजह से हुए अपमान को भी अस्तित्व का संकट बनाकर प्रचारित किया जाता है।
जब हम हिंदुओं और मुसलमानों के साथ होने वाले पाखंड की बात कर रहे हैं, तो यह जिक्र करना जरूरी है कि मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा थे जिसने वक्फ संशोधन एक्ट 2025 की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी। खास कर उस प्रावधान पर, जिसमें विवाद सुलझने तक कब्जा वाली सरकारी जमीन वक्फ नहीं मानी जा सकती, जबकि यही असल में कब्जे और अतिक्रमण को बढ़ावा देता है।
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