चीन की छुट्टी करने का प्लान, रेयर अर्थ पर मोदी सरकार का बड़ा ऐलान
—7280 करोड़ का मेगा प्रोजेक्ट शुरू
नई दिल्ली, 26 नवंबर, (एजेंसियां)। वैश्विक सप्लाई चेन में चीन के वर्चस्व को चुनौती देने की भारत की रणनीति को बड़ा बल मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (आरईपीएम) के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 7280 करोड़ रुपये की ऐतिहासिक योजना को मंजूरी दे दी। यह पहल न केवल आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि वैश्विक रेयर अर्थ बाजार में चीन की पकड़ को सीधी चुनौती पेश करती है।
कैबिनेट द्वारा स्वीकृत यह योजना ‘सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट के निर्माण को बढ़ावा देने’ के नाम से शुरू की जा रही है। जानकारी के अनुसार यह अपनी तरह की पहली सरकारी पहल है, जिसका उद्देश्य देश में आरईपीएम पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना, अत्याधुनिक मैग्नेट तकनीक को प्रोत्साहन देना और भारत को इस हाई-टेक उद्योग में विश्वस्तरीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है। वर्तमान में दुनिया में रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई का लगभग 90 प्रतिशत चीन नियंत्रित करता है, ऐसे में भारत की यह योजना चीन के एकाधिकार को सीधे प्रभावित करेगी।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इस योजना के तहत देश में 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष उत्पादन क्षमता तैयार की जाएगी। इसके लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से पाँच लाभार्थी चुने जाएंगे, जिन्हें प्रत्येक को अधिकतम 1,200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष की क्षमता का आवंटन होगा। यह मैग्नेट ऐसे उद्योगों की रीढ़ माने जाते हैं जिनमें इलेक्ट्रिक वाहन, एयरोस्पेस, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल उपकरण और रक्षा शामिल हैं। इन मैग्नेट के बिना आधुनिक तकनीक आधारित मशीनें और सिस्टम संभव ही नहीं।
सरकार की योजना सात वर्षों तक चलेगी। इसमें दो वर्ष आरईपीएम विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना के लिए और पाँच वर्ष बिक्री आधारित प्रोत्साहनों के लिए निर्धारित किए गए हैं। इस दौरान कंपनियों को न केवल वित्तीय सहायता मिलेगी बल्कि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आकर्षक प्रोत्साहन भी दिए जाएंगे। कुल 7,280 करोड़ रुपये में से 6,450 करोड़ रुपये बिक्री-आधारित प्रोत्साहन के रूप में और 750 करोड़ रुपये पूंजीगत सब्सिडी के रूप में खर्च किए जाएंगे। यह पूंजीगत सब्सिडी उत्पादन संयंत्र स्थापित करने में कंपनियों को बड़ा सहयोग प्रदान करेगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की यह योजना ऐसे समय में लाई गई है जब वैश्विक बाजार तेजी से रेयर अर्थ सप्लाई के लिए चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में बढ़ रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और यूरोप पहले ही सप्लाई चेन विविधीकरण पर ज़ोर दे रहे हैं। भारत के विशाल बाजार, तकनीकी क्षमता और भू-राजनीतिक संतुलन को देखते हुए, यह प्रोजेक्ट भारत को वैश्विक तकनीकी अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका दिला सकता है।
भारत में रेयर अर्थ उद्योग की मांग पिछले पाँच वर्षों में कई गुना बढ़ी है, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों के तेज़ी से बढ़ते बाजार के कारण। ऑटोमोबाइल सेक्टर में इस्तेमाल होने वाले नेओडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट की मांग 2030 तक दोगुनी होने का अनुमान है। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से भारत बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भरता घटा पाएगा और घरेलू उत्पादन मजबूत होने से उद्योगों को सस्ती और स्थिर सप्लाई मिल सकेगी।
कैबिनेट बैठक में रेयर अर्थ योजना के साथ अन्य अहम फैसले भी लिए गए। पुणे मेट्रो विस्तार को मंजूरी दी गई, जिससे शहर में मेट्रो नेटवर्क का विस्तार होगा। वहीं देवभूमि द्वारका (ओखा)–कनालुस रेलवे लाइन को डबल करने और बदलपुरा–करजत के बीच तीसरी और चौथी रेलवे लाइन बिछाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी मिली। माना जा रहा है कि यह फैसले पश्चिमी भारत में परिवहन, लॉजिस्टिक्स और उद्योग को नई गति देंगे।
सरकार का यह रेयर अर्थ मैग्नेट प्रोजेक्ट आर्थिक और रणनीतिक दोनों ही मोर्चों पर चीन को चुनौती देता है। पीएम मोदी पिछले कुछ वर्षों में लगातार यह कहते आए हैं कि भारत को हाई-टेक निर्माण का केंद्र बनना होगा। यह प्रोजेक्ट उसी दिशा में एक निर्णायक कदम है। चीन पर निर्भरता कम होने से भारत न केवल अपनी औद्योगिक सुरक्षा बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक तकनीकी बाजार में प्रतिस्पर्धी भी बनेगा।
इस परियोजना के लागू होने के बाद भारत—अमेरिका, जापान, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ रेयर अर्थ सप्लाई चेन साझेदारी को भी मजबूत कर सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया इस समय चीन के विकल्प तलाश रही है, और भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक और स्थिर देश के पास यह अवसर है कि वह रेयर अर्थ बाज़ार में अपना मजबूत दखल बना सके।
कुल मिलाकर, 7280 करोड़ रुपये का यह प्रोजेक्ट न केवल भारत की तकनीकी क्षमता में बड़ा उछाल लाएगा बल्कि वैश्विक स्तर पर चीन की पकड़ को कमजोर करने की दिशा में भारत की सबसे रणनीतिक चालों में से एक साबित हो सकता है।

