वंदे मातरम पर राज्यसभा में घमासान

नड्डा और खरगे आमने-सामने, नेहरू का नाम आने से बढ़ा विवाद

वंदे मातरम पर राज्यसभा में घमासान

नई दिल्ली, 11 दिसम्बर,(एजेंसियां)।राज्यसभा में गुरुवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर हुई विशेष चर्चा के दौरान विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जमकर हंगामा देखने को मिला। विवाद तब शुरू हुआ जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और सदन के नेता जेपी नड्डा ने अपने भाषण में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का उल्लेख किया। नड्डा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह योग्य था। इस टिप्पणी ने कांग्रेस की ओर से तीखा प्रतिरोध पैदा किया और सदन में भारी कोलाहल मच गया।

खरगे का तीखा सवाल: चर्चा वंदे मातरम पर या नेहरू पर?

कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए JP नड्डा की टिप्पणियों को "विकृत" और "असत्य" बताया।
खरगे ने कहा—
“मैं जानना चाहता हूं कि यह बहस वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ को लेकर हो रही है या पंडित जवाहरलाल नेहरू को केंद्र में रखकर। जो बातें कही जा रही हैं, वे तथ्यहीन और भ्रामक हैं।”

खरगे के इस बयान के बाद कांग्रेस सदस्यों ने सदन में जोरदार विरोध दर्ज कराया। इससे वातावरण और गर्म हो गया।

नड्डा का पलटवार: कांग्रेस ने संस्कृति से किया समझौता

जेपी नड्डा ने अपने जवाब में कहा कि कांग्रेस ने “भारत की संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों से हमेशा समझौता किया है।”
नड्डा ने आरोप लगाया कि—

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“मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम के कुछ श्लोक हटाए गए। जून 1947 में कांग्रेस ने ‘खंडित स्वतंत्रता’ स्वीकार की, जिसके परिणामस्वरूप जिन्ना के सपने पूरे हुए। बाद में पाकिस्तान की गुरिल्ला सेनाओं के सामने पीओके समर्पित कर दिया गया और अनुच्छेद 370 जैसा निर्णय लिया गया। यह समझौतों की राजनीति थी।”

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नड्डा ने यह भी कहा कि वंदे मातरम राष्ट्रवाद का प्रतीक है और इसे वही सम्मान मिलना चाहिए जो राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को दिया गया है।

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अध्यक्ष का हस्तक्षेप, सदन में कुछ देर बाद शांति

जब तकरार बढ़ती गई और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप करने लगे, तो सदन के अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन को हस्तक्षेप करना पड़ा।
उन्होंने दोनों पक्षों से संयम बरतने और चर्चा को मुद्दे पर केंद्रित रखने की अपील की। उनके हस्तक्षेप के बाद स्थिति कुछ हद तक शांत हुई और बहस आगे बढ़ सकी।

नड्डा ने दी सफाई: नेहरू की छवि धूमिल करने का इरादा नहीं

राज्यसभा में बहस का समापन करते हुए नड्डा ने कहा—
“सरकार का उद्देश्य पंडित जवाहरलाल नेहरू की छवि को धूमिल करना नहीं है। हमारा मकसद केवल और केवल ऐतिहासिक तथ्यों को सही करना है। वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार था, और उस समय की सत्ता इसके लिए जिम्मेदार थी।”

उन्होंने दोहराया कि वंदे मातरम भारत की आत्मा से जुड़ा गीत है, जो राष्ट्रवाद का स्तंभ है।

राजनीतिक गर्मी जारी, दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्थिति पर अड़े

बहस समाप्त हो जाने के बाद भी राजनीतिक गलियारों में यह मुद्दा गरमाया हुआ है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा वंदे मातरम की आड़ में नेहरू को लक्षित कर रही है और इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
वहीं भाजपा का कहना है कि वह केवल उन ऐतिहासिक सच्चाइयों को सामने ला रही है जिन्हें वर्षों तक छिपाया गया।

यह विवाद आने वाले दिनों में और तेज हो सकता है, क्योंकि वंदे मातरम और नेहरू दोनों ही भारतीय राजनीति के अत्यंत संवेदनशील विषय रहे हैं।