बांग्लादेश में 12 फरवरी को आम चुनाव

अंतरिम सरकार पर बढ़ते दबाव के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त ने की तारीखों की घोषणा

बांग्लादेश में 12 फरवरी को आम चुनाव

ढाका, 11 दिसम्बर,(एजेंसियां)। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता, जन असंतोष और प्रशासनिक दबाव के माहौल के बीच 12 फरवरी 2026 को आम चुनाव कराने की घोषणा कर दी गई है। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीरुद्दीन ने गुरुवार को रंगपुर जिले में आयोजित एक कार्यक्रम में चुनाव की तारीख का आधिकारिक ऐलान किया। यह चुनाव उस समय होने जा रहा है जब देश पिछले वर्ष हुए छात्र विद्रोह और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद पहली बार पूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रवेश कर रहा है।

छात्र विद्रोह के बाद पहली बड़ी परीक्षा

पिछले वर्ष छात्रों के हिंसक विद्रोह और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को चुनाव से पहले ही बुरी तरह हिला दिया था। स्थिति इतनी बिगड़ी कि उन्हें देश छोड़कर भारत शरण लेनी पड़ी। इसके बाद शासन का दायित्व एक अंतरिम प्रशासन को सौंपा गया, जिसका नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं।

हालांकि, यूनुस प्रशासन ने वादा किया था कि वह व्यापक सुधार करेगा और देश में राजनीतिक संतुलन बहाल करेगा, लेकिन सुधारों में देरी ने जनता में असंतोष को बढ़ाया है। ढाका और चटगांव जैसे प्रमुख शहरों में पिछले कुछ दिनों से फिर से प्रदर्शन देखे जा रहे हैं।

चुनाव आयोग का सख्त रुख: लोगों का भरोसा टूटा है

चुनाव की तारीख घोषित करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त नसीरुद्दीन ने स्वीकार किया कि—

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“देश के लोगों का चुनाव प्रणाली, चुनाव आयोग और प्रशासनिक ढांचे से भरोसा लगभग खत्म हो गया है। हमें इसे फिर से स्थापित करना होगा।”

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उन्होंने यह भी बताया कि अंतरिम सरकार ने पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी आवामी लीग के "साफ छवि वाले" नेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति दी है, लेकिन एक महत्वपूर्ण शर्त के साथ—
वे आवामी लीग के चुनाव चिह्न का उपयोग नहीं कर सकेंगे।
यानी पार्टी पर लगा बैन अभी भी पूरी तरह लागू है और उसके उम्मीदवार केवल निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।

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यह निर्णय देश के राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से बदल सकता है, क्योंकि आवामी लीग लंबे समय तक बांग्लादेश की प्रमुख राजनीतिक ताकत रही है।

मुख्य मुकाबला: बीएनपी बनाम नए गठजोड़

साल 2026 के चुनावों में सबसे बड़ी दावेदार मानी जा रही है—
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP)
छात्र आंदोलनों और शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बीएनपी एक बार फिर मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है।

इसके अलावा, चुनावी राजनीति में एक और बड़ा बदलाव यह है कि जमात-ए-इस्लामी को भी राजनीतिक प्रक्रिया में वापसी का अवसर मिल रहा है।
2013 के अदालत के फैसले के बाद जमात को संविधान विरोधी ठहराते हुए चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। हालांकि, अंतरिम सरकार की ढील के बाद अब जमात के कई नेता निर्दलीय के रूप में चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।

इससे धार्मिक और राष्ट्रवादी राजनीति के फिर से सक्रिय होने की संभावना बढ़ गई है।

चुनाव से पहले यूनुस सरकार में बढ़ती खींचतान

ताजातरीन घटनाक्रम में यूनुस सरकार के दो वरिष्ठ सलाहकारों के इस्तीफे ने प्रशासन के भीतर की दरारें उजागर कर दी हैं।
सुधारों की धीमी गति, नौकरशाही में बढ़ती तनातनी और चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की मांगों ने अंतरिम सरकार को लगातार दबाव में रखा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक विश्वसनीयता की बहाली की भी परीक्षा है।

अंतरराष्ट्रीय नजरें बांग्लादेश पर

भारत, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ की निगाहें इस चुनाव पर टिकी हुई हैं।
भारत, जो शेख हसीना के शासन में ढाका का सबसे करीबी सहयोगी रहा, अब राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चिंतित है।
वहीं पश्चिमी देश लंबे समय से बांग्लादेश में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाते रहे हैं।

आगामी चुनाव यह तय करेगा कि बांग्लादेश मजबूत लोकतंत्र की राह पर लौटता है या राजनीतिक अस्थिरता नए रूप में फिर सामने आती है।