नई दिल्ली, 2 दिसम्बर,(एजेंसियां)। केरल के इडुक्की जिले की मुन्नार पंचायत में स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले राजनीतिक हलचल अचानक तेज हो गई है। वजह है—भाजपा की उम्मीदवार सोनिया गांधी। नाम सुनकर चौंकना स्वाभाविक है, क्योंकि यह वही नाम है जो दशकों तक कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति का पर्याय रहा है। लेकिन यहां कहानी बिल्कुल अलग है।
मुन्नार पंचायत की यह सोनिया गांधी एक स्थानीय परिवार से आती हैं और अब भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। उनका नाम कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलता भले हो, लेकिन उनकी राजनीतिक दिशा बिल्कुल विपरीत है। यही वजह है कि इलाके में उनका नाम चर्चा और कौतूहल का केंद्र बन गया है।
सोनिया गांधी के पिता स्वर्गीय दुरे राज, नल्लथन्नी कल्लार क्षेत्र के सक्रिय कार्यकर्ता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति सम्मान और अपनी नवजात बेटी के प्रति प्रेम के चलते उन्होंने बेटी का नाम "सोनिया गांधी" रखा था। लंबे समय तक यह नाम स्थानीय पहचान का हिस्सा भर था, लेकिन विवाह के बाद कहानी बदली।
सोनिया के पति सुभाष भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और पंचायत महासचिव के पद पर तैनात हैं। डेढ़ साल पहले उन्होंने मुन्नार मूलक्कड़ा वार्ड से उपचुनाव भी भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था। पति के राजनीतिक रास्ते से प्रभावित होकर सोनिया गांधी भी भाजपा समर्थक राजनीति में सक्रिय हो गईं। यही कारण है कि इस बार वह भाजपा समर्थित उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रही हैं।
मुन्नार पंचायत में यह मुकाबला दिलचस्प इसलिए भी है, क्योंकि कांग्रेस ने यहां से मंजुला रमेश को अपना उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला नाम के प्रभाव वाली उम्मीदवार से पड़ गया है। राजनीतिक इतिहास बताता है कि कई बार "नामधारी उम्मीदवार" मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा कर देते हैं और वोटों का बंटवारा हो जाता है। कांग्रेस की चिंता का यही कारण है कि कहीं उनका वोट-बैंक नाम की वजह से खिसक न जाए।
स्थानीय लोग भी मानते हैं कि नाम के कारण भाजपा उम्मीदवार को अप्रत्याशित पहचान मिल रही है। जहां अन्य उम्मीदवारों को अपनी पहचान बनाने में समय लग रहा है, वहीं "सोनिया गांधी" नाम खुद ही लोगों का ध्यान खींच रहा है। ग्रामीण इलाकों में इसका प्रभाव और ज्यादा दिख सकता है, क्योंकि यहां नाम की पहचान तेजी से फैलती है।
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा कार्यकर्ता भी इस ‘नाम प्रभाव’ को अपने पक्ष में उपयोग करते दिख रहे हैं, हालांकि पार्टी नेता इसे संयोग करार देते हैं। उनका कहना है कि उम्मीदवार के चयन में स्थानीय सक्रियता और संगठनात्मक कामकाज को प्राथमिकता दी गई है।
कांग्रेस की ओर से हालांकि इस स्थिति को लेकर असहजता साफ झलक रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि नाम को लेकर जनता में अनावश्यक भ्रम पैदा किया जा रहा है। स्थानीय संगठन इस भ्रम को दूर करने के लिए विशेष प्रचार रणनीति तैयार कर रहा है।
इसी बीच, केरल में 2025 के स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारियाँ तेज़ हो गई हैं। चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को होंगे। पहले चरण में तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, पथानामथिट्टा, कोट्टायम, इडुक्की, अलप्पुझा और एर्नाकुलम जिलों में मतदान होगा। दूसरे चरण में त्रिशूर, पलक्कड़, मलप्पुरम, कोझीकोड, वायनाड, कन्नूर और कासरगोड में मतदान होगा। मतगणना 13 दिसंबर को की जाएगी।
मुन्नार की इस सीट पर मुकाबला इसलिए भी दिलचस्प हो गया है, क्योंकि यह सिर्फ राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि “नाम बनाम पहचान” की भी लड़ाई बन चुकी है। भाजपा की उम्मीदवार सोनिया गांधी अपने अलग राजनीतिक रुख और स्थानीय कामकाज के आधार पर जीत का दावा कर रही हैं, जबकि कांग्रेस इस अनोखी स्थिति से निपटने के लिए हर रणनीति आजमा रही है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता नाम को चुनते हैं या काम को।

