"कलम की नीलामी में राष्ट्रहित गुम!"

"1826 से 2024 तक पत्रकारिता का अधःपतन: 'उदंत मार्तंड' के आदर्शों को निगल गई पूंजी और विचारधारा की भूख!"

नई दिल्ली, 30मई (एजेसी) : 30 मई 1826—भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव रखने वाला वह ऐतिहासिक दिन, जब पंडित युगलकिशोर ने ‘उदंत मार्तंड’ के माध्यम से घोषणा की—“हिंदुस्थानियों के हित के हेत”। लेकिन आज, 200 वर्षों के बाद, पत्रकारिता की आत्मा कराह रही है। न वह "हित" रहा, न “हिंदुस्थानी"।

जो पत्रकारिता देश की आज़ादी की मशाल बनी थी, वह आज मुनाफाखोरों की गुलाम बन चुकी है। कलम जो कभी सत्ता से नहीं डरती थी, आज कॉरपोरेट के चरण छू रही है।

उदंत मार्तंड जैसा छोटा बीज, जिसने संघर्ष की खाद में जन्म लेकर एक मिशन की नींव डाली, आज उसी पत्रकारिता को बाजारवाद और वैचारिक विष ने खोखला कर दिया है।


🧨 मीडिया या मज़हबी मुखौटा?

आज के बड़े मीडिया घराने खबर नहीं, एजेंडा बेचते हैं।
भोपाल में हुए 'लव जिहाद' के मामले में जब आरोपी मुस्लिम युवक खुद कुबूल कर रहे हैं कि “हिंदू लड़कियों को फंसाना और उनका यौन शोषण करना सवाब है”—तो क्या यह एक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं?
लेकिन कुछ कथित पत्रकार इस सच को सामने लाने के बजाय इसे “सांप्रदायिकता” करार देकर दबाना चाहते हैं।
क्या अब सच दिखाना भी गुनाह हो गया है?

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🧠 कम्युनिस्ट कलम के कहर से घायल पत्रकारिता

इन पत्रकारों ने पत्रकारिता को विचारधारा की तलवार बना दिया है। ये मौलवियों के बलात्कार को 'संतों' पर मढ़ते हैं, और हिन्दू साधुओं को अपराधी साबित करने में दिन-रात एक कर देते हैं।
क्यों? क्योंकि ये 'भारतीयता विरोधी विचारधारा' के प्रतिनिधि हैं, जिनके लिए राष्ट्र नहीं, केवल 'रेड बुक' का एजेंडा अहम है।

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📉 बाजार का बोझ, नैतिकता का पतन

आज मीडिया संस्थानों में मालिक पत्रकार नहीं, कारोबारी हैं। पत्रकारों की आत्मा बिक चुकी है—या तो कम्युनिस्ट वामपंथियों के हाथ, या कॉरपोरेट पूंजीपतियों के पास।
सवाल ये है—क्या मीडिया अब केवल बिकने वाला प्रोडक्ट है?

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🛑 पत्रकारिता का विपक्ष बनना नहीं, विकल्प बनना ज़रूरी है

आज कुछ पत्रकार खुद को विपक्ष समझ बैठे हैं। मुद्दा उठाना और भाग जाना ही पत्रकारिता नहीं है।
पत्रकार को समाधान देना होता है, समाज का मार्गदर्शन करना होता है।
लेकिन वर्तमान पत्रकारिता सत्ता का विरोध करने में इतनी अंधी हो गई है कि वह देशहित, राष्ट्रहित और समाजहित तक को कुचलने से नहीं चूकती।


🚩 अब समय है ‘उदंत मार्तंड’ की आत्मा को पुनर्जीवित करने का!

पत्रकारिता का धर्म केवल एक ही होना चाहिए—‘राष्ट्र सबसे पहले’।
कलम से निकला हर शब्द भारतीय स्वाभिमान और जनहित को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
जब पत्रकारिता में फिर से “हिंदुस्थानियों के हित के हेत” का भाव जाग जाएगा, तब यह देश पत्रकारिता को फिर वही सम्मान देगा जो 1826 में ‘उदंत मार्तंड’ को दिया था।